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इंग्लैंड में प्रधानमंत्री पद की डिबेट में लिज ट्रस और ऋषि सुनक के बीच टैक्स को लेकर मतभेद सामने आया. चांसलर (वित्त मंत्री) रहते हुए ऋषि ने कॉरपोरेट टैक्स को 19% से बढ़ाकर 24% करने और NI टैक्स को 12% से बढ़ाकर 13.25% करने का फैसला लिया था.
लीडरशिप की डिबेट में लिज ट्रस ने इस टैक्स वृद्धि को वापस लेने की बात कही. वहीं ऋषि ने कहा कि वे पहले इनफ्लेशन को कम करेंगे बाद में इस टैक्स को कम करेंगे.
मुद्रास्फीति और टैक्सेशन का क्या संबंध है?
मुद्रास्फीति एक टैक्स है जो हर किसी को हर चीज पर देना होता है. जब सरकार को और अधिक पैसे की आवश्यकता होती है तो वह दो तरीके से पैसा जुटा सकती है…या तो टैक्स लेकर, या फिर नोट छापकर. नोट छापने से बजट तो बैलेंस हो जाता है लेकिन आपकी जेब में जो नोट पहले से है उसकी कीमत कम हो जाती है. कॉरोना काल में ऋषि ने पहले पहले खूब मजे कराए हैं, लोगों को घर बैठे पैसे दिए हैं, रेस्टोरेंट में खाने तक के पैसे दिए हैं. शुरू शुरू में इससे बाजार में अच्छा ग्रोथ भी मिला है. लेकिन अब भयंकर इनफ्लेशन आया है जिसमें यूक्रेन युद्ध का भी हाथ है. ऐसे में सरकार या तो टैक्स बढ़ाए या इनफ्लेशन बढ़ने दे.
तीसरा एक उपाय है…सरकार खर्चे कम करे. जो लाखों मुफ्तखोरों को मुफ्त में घर बिठाकर पैसे बांटती है वह बन्द करे. उसे छूने की किसी को हिम्मत तो है नहीं. उसको छूते ही बीबीसी वह बवाल काटेगी कि जीना मुश्किल हो जायेगा.
जब मार्गरेट थैचर टेड हीथ की सरकार में एजुकेशन सेक्रेटरी थीं तो उन्होंने स्कूलों में बच्चों को दूध बांटना बन्द करवा दिया था. उन्होंने कहा, स्कूल पढ़ाई की जगह है, दूध घर से पीकर आओ. मीडिया ने तब “थैचर थैचर मिल्क स्नैचर” का इतना हंगामा किया था कि थैचर को हटना पड़ा था. यह रिस्क ऋषि या लिज, कोई नहीं ले सकता…क्योंकि सरकार किसी की भी हो, यहां भी सिस्टम तो उनका ही है.
भारत में भी पैकेट वाले गेहूं, दही वगैरह पर 5% जीएसटी पर लोग हल्ला कर रहे हैं. सरकार को किसी ना किसी चीज पर टैक्स लगाना ही है. जिसपर कुछ भी नहीं है उसपर 5% लगाए, या जिसपर पहले से ही 12 या 18 प्रतिशत है उसपर बढ़ाए? या आपको बिना बताए हर चीज पर टैक्स लगा दे यानी नोट छाप ले और मुद्रास्फीति बढ़ने दे…यह सब निट्टी-ग्रिटी है और इसपर बाहर बैठ कर ज्ञान देने का कोई फायदा नहीं है.
फिलहाल भारत की टैक्स व्यवस्था मुझे तो इंग्लैंड से बेहतर ही लगती है.
भारत में इनकम टैक्स की दर इंग्लैंड से कम है, (यहां 40% देता हूं), मेरे किए हुए खर्चे पर टैक्स कम है (यहां हर चीज जो खरीदता या इस्तेमाल करता हूं उसके ऊपर फ्लैट 20% वैट देता हूं)… और इससे जो पैसा आता है उसमें से मुझे एक पैसा का कुछ नहीं मिलता, जब से बच्चे स्कूल से निकल गए. ज्यादातर भारतीय अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाते हैं तो उनको वह भी नहीं.
उसके ऊपर जो भी बिजली पानी है, वह सरकार नहीं देती कंपनियां देती हैं. जो सड़क है, उसके लिए हम सालाना टैक्स देते हैं जो लगभग 250-450 पाउंड (25000-45000 रुपए) प्रति कार है. जो पेंशन मिलेगी उसके लिए हम अलग से पेंशन कटवाते हैं, और जो मेडिकल सुविधा है उसके लिए अलग से 12% टैक्स (NI TAX) है.
सरकारों के पास अपना कोई पैसा नहीं होता. जो है वह आपका पैसा है. अगर सरकार आपको कुछ भी देती है तो वह आपके पैसे से ही देती है. सरकार जितना अधिक खर्च करेगी, आपके हाथ में खर्च करने के लिए उतना ही कम बचेगा. यह एक झूठ है कि सरकार के पैसे खर्च करने से इकोनॉमी ग्रो करती है.
सरकार से कुछ कहना है तो यह कहें कि सरकार अपने खर्चे कम करे. लोगों को मुफ्त बांटने वाली स्कीमें बन्द करे. सिद्धांत तौर पर यह स्वीकार कीजिए कि सरकार का और कोई काम नहीं है, सिवाय सिर्फ कानून व्यवस्था, न्याय और सुरक्षा के. इसके अलावा सबकुछ हम खुद कर लेंगे और सरकारों से कम खर्च पर और बेहतर कर लेंगे.
जबतक हम सरकारों से वेलफेयर और समाजवादी मॉडल की उम्मीद करते रहेंगे तबतक यह बहस बेकार है कि सरकार उसके लिए पैसे कहां से ला रही है? दूध दही से, या दवाई से, या पेट्रोल डीजल से… वह जा रहा है मेरी ही जेब से.

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