बिहार में नीतीश चा ने 2015 के अपने कुकर्म पर विष की बेल चढ़ा दी है। उन्होंने आरजेडी को उस समय संजीवनी दी, जब वह अपनी मौत आप मर रहा था, लालू का अंधकार-राज खत्म हो रहा था। अब वह आठवीं फेल, लड़की छेड़नेवाला, सजाशुदा अपराधी का बेटा बिहार का उप-मुख्यमंत्री है। (खैर, बिहारियों ने तो उसकी मां को भी झेला है, जो राज्यपाल की टांग तोड़ती थी और ललन सिंह के नीतीश से संबंध का बखान करती थी।)
मेक्सिको के राष्ट्रपति अब्रादोर ने यूएन को एक पीसकीपिंग कमिटी बनाने की मांग की है। वह एक रेजोल्यूशन भेजनेवाले हैं। उसमें पीएम मोदी का नाम उन्होंने प्रस्तावित किया है। (चमचों, उड़ाओ मजाक। भगतों, लोट जाओ)
दीमापुर में तिरंगा यात्रा पूरी शान से निकला है। कानपुर में भजपइए आपसे में लड़ लिए हैं।
ठिगने हाजी की फिल्म कल जोर-शोर से आ रही है, हिंदुस्तान टाइम्स के रिव्यू के मुताबिक टॉम हैंक्स से बेहतर अभिनय किया है, जेहादी ने। (सही भी है, टॉम बेचारे अभिनय करते नजर ही नहीं आए, न मुंह भींचा, न हरेक बात पर हूं..हूं…हूं..कहा, न ढाका जैसा मुंह खोला)ये चारों घटनाएं इसलिए बता रहा हूं कि दुखी हूं। बारिश धारासार हो रही है। ये मौसम मुझे उदास करता है।
उदासी खैर इस वजह से नहीं। उदासी है कि मोदीनीत सरकार के 8 साल हो गए। कई ऐतिहासिक काम हुए, जो कभी इस देश में असंभव माने जाते थे, लेकिन एक संस्थान, एक मीडिया का ऐसा नाम नहीं बना जो नैरेटिव सेट कर सके। पांचजन्य या ऑर्गैनाइजर अभी भी 1970 में हैं, स्वराज जला और बुझ गया, ऑपइंडिया चूरन चाटने वाला बन गया, कई कोशिशें हुईं, सब नाकाम। स्वांत: सुखाय या आपसी सर-फुटौव्वल में।
हम सनातनी इतने पतित कब हो गए, कैसे हो गए?दूसरों की खिंचाई में, बढ़ती में जलने में, टांग खींचने में कब से हमें इतना रस आने लगा…ये मैं समझ नहीं पाता। एक अच्छे प्लेटफॉर्म की सख्त जरूरत है, जो इस शून्य को, इस VOID को भर सके।