पार्जिटर ने अपनी विफलताओं के बाद भी कुछ प्रश्न ऐसे उठाए हैं, जिनको उस दबाव से बाहर रख कर समझें, जिसमें वह काम कर रहे थे, तो भारतीय इतिहास की अधिक गहरी समझ पैदा होती है। इतना ही नहीं, दूसरे…
Bhagwan Singh
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इसके दो अर्थ हैं, एक ‘ हमारी जान का दुश्मन’ और दूसरा ‘ स्वयं अपनी जान का दुश्मन’। सुनने में यह विचित्र लगेगा कोई अपनी जान का दुश्मन भी हो सकता है, परंतु सच्चाई यह है कि महत्वाकांक्षी लोगों में…
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Bhagwan Singhइतिहासजाति धर्ममुद्दासच्ची कहानियांसाहित्य लेख
पुराणों का सच भाग – 4
by Bhagwan Singh 237 viewsपार्जिटर भारतीय पौराणिक इतिहास सही क्रम में इसलिए नहीं रख सके उन्हें अपने पाठ को उन मान्यताओं से समायोजित करना पड़ रहा था, जिनको बिना परखे सर्वानुमति सी मिल गई थी और वे दूसरे प्रमाणों का निकष बन गई थीं…
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राजनीतिBhagwan Singhइतिहासजाति धर्ममुद्दासामाजिकसाहित्य लेख
पुराणों का सच भाग – 3
by Bhagwan Singh 249 viewsलगातार दुहराते हुए जब किसी झूठ को विश्वास में बदल दिया जाता है तो उसका खंडन करके भी निर्मूल नहीं किया जा सकता। हमारी अंतश्चेतना का अंग बन जाने के बाद वह इतना प्रबल हो जाता है कि जब उसका…
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जाति धर्मBhagwan Singhमुद्दासामाजिकसाहित्य लेख
न इबादत, न अदावत, न आरती न भजन
by Bhagwan Singh 242 viewsसभी मजहबों की किताबें हजार दो हजार साल या इससे पुरानी हैं, वे हमें पीछे की ओर, उस युग में, ले जाती हैं जब वे किताबें लिखी गई थीं और समकालीन यथार्थ को देखने-समझनें में बाधक बनती हैं, पर बचपन…
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चेतावनी – सर बचाना है तो इस पोस्ट को पढ़ने से बचें पुराणों का जिस तरह का पाठ पार्जिटर ने किया, उसके अनुसार आर्य आक्रमण का सिद्धान्त गलत ही नहीं असंभव है।[1] भारतीय परंपरा के अनुसार आर्यों/ऐलों का अभ्युदय…
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हमारी चिंता किसी को गिराने, मिटाने और उनकी कीमत पर अपने को उठाने की नहीं, संभलने, संभालने और आगे बढ़ने की है। हम जब भी दूसरों की आलोचना करते हैें तो आत्म निरीक्षण भी करना चाहिए। धार्मिक उत्तेजना को उभार…
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नयाBhagwan Singhइतिहासभारत निर्माणसामाजिकसाहित्य लेख
आत्मानं विद्धि भाग -3
by Bhagwan Singh 320 viewsमुझे दुख है कि हमारा समाज भीड़ बनता जा रहा है- कारण आत्मगत और बाह्य दोनों हैं। लोग सोचने को ही कायरता समझने लगे हैं जब कि अपनी कमियों को छिपा कर सारा दोष दूसरों के माथे मढ़ना बौद्धिक कायरता…
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हमें अपने पिछले लेख के अनुसार जिन दो प्रश्नों का उत्तर देना था वे थे, “क्या भारत में सभ्यता का प्रसार करने वाले पश्चिम से आए थे? और, क्या आक्रामकों ने स्थानीय जनों को गुलाम बनाकर उन्हें शूद्र की कोटि…
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के.एम.मुंशी ने सच्चे इतिहास को परिभाषित करते हुए, अपेक्षा की थी, यह किसी देश के निवासियों की कहानी होनी चाहिए। “To be a history in the true sense of the word, the work must be the story of the people…