मेरा पुश्तैनी घर गंगा नदी के किनारे है…
और, मेरे घर से गंगा नदी की दूरी मुश्किल से 1 किलोमीटर होगी.
लेकिन, चूंकि मेरे पिताजी एक सरकारी अफसर थे तो हर 2-3 साल में उनका ट्रांसफर हो जाया करता था इसीलिए हमलोग उनके साथ ही रहते थे…
और , पुश्तैनी घर कम ही आना जाना हो पाता था.
परन्तु… गर्मी की छुट्टी और दुर्गापूजा आदि में हमलोग गांव जरूर जाते थे.
तो… जब मैं चौथे पांचवे क्लास में था तो हमलोग एकबार इसी तरह गर्मी छुट्टी में गांव गए हुए थे.
और, गांव जाकर गंगा जी में नहाना मुझे बहुत पसंद था.
वहाँ चाचा जी सब रहते थे और मेरे चाचा जी बहुत अच्छे तैराक थे.
तो… जब मैं गांव गया तो मैंने भी जिद मचा दी कि मुझे भी तैरना सीखना है.
पहले तो मम्मी ने बहुत मना किया कि बाद में फिर कभी सीख लेना लेकिन हमलोग तो बचपन से ही जिद्दी स्वभाव के हैं…
इसीलिए, अंततः मम्मी को मेरी बात माननी पड़ी और मुझे चाचा जी के साथ तैरने सीखने को भेज दिया.
मैं खुशी खुशी… कंधे पर गमछा लेकर हाफ पैंट पहने हुए चाचा जी के साथ गंगा जी चल दिया.
वहाँ गंगा जी में पहले से भी चाचा जी के बहुत से मित्र नहाने आये हुए थे (मित्र क्या.. गांव में तो सब एक दूसरे को जानते ही हैं
वहाँ जाकर चाचा जी अपने मित्रों से बात करने लगे..
लेकिन , जब मैंने उसने कहा कि अरे बात ही करते रहेंगे क्या… हमको तैरना सीखना है.
तो, चाचा जी को ध्यान आया…
और, बोले कि.. अरे हां, चलो पहले तुम्हे सिखा देते हैं.
फिर, चाचा जी मुझे गंगा जी में गले तक पानी में ले गए और फिर गहरे पानी में धकेल दिए.
अब मैं तैरना क्या सीखता… जान बचाने के लिए छटपटाने लगा.
आंखें फैल गई… और , दो चार घूंट पानी भी पी लिया.
मुझे अच्छी तरह याद है कि… मैं डूबने से बचने के लिए पूरी जी जान लगाए हुए था और हाथ पैर मार रहा था.
लगभग 2-4 मिनट के बाद चाचा जी ने मुझे पकड़ के पानी से निकाल लिया.
पानी से निकल के मैं पहले तो खाँसा और फिर रोते हुए चाचा जी को कहा कि आप तो मुझे मारिए दोगे.. मुझे पानी में धकेल काहे दिए ???
तो, चाचा जी ने हंसते हुए कहा कि … अरे, पानी में उतरोगे नहीं तो तैरना कैसे सीखोगे ???
जब पानी में हाथ पैर मारोगे तो खुद ही तैरना सीख जाओगे.
फिर दो चार दिन इसी तरह की धकेला ट्रेनिंग चली और आश्चर्यजनक रूप से मैं धकेले जाने पर पानी से तैर कर बाहर आने लगा.
और, चाचा जी की उसी ट्रेनिंग की बदौलत मैं एक अच्छा तैराक हूँ.
अच्छा मतलब कि.. उसके बाद तो मुझमें इतना कॉन्फिडेंस आ गया कि हमलोग बदमाशी से खेत में लगे बड़े बड़े बोर वेल (पहले खेत में बड़े बड़े कुएं होते थे जहां से खेत के लिए पानी निकाला जाता था) में ऊपर से ही कूद जाते थे.
और, छोटी मोटी नदी यूँ ही पार कर जाते हैं.
नदी और कुआं क्या… अब समुद्र में भी डर नहीं लगता है बल्कि वहाँ भी इंजॉय करते हैं.
खैर…. बाद में जब मेरे कुछ मित्र सेना एवं पुलिस में गए थे तो उन्होंने भी बताया कि…
वहाँ भी तैरना ऐसे ही सिखाते हैं यार.
वहाँ भी…. उठा के गहरे स्विमिंग पूल में फेंक देते हैं.
(किसी बेहद अप्रिय स्थिति से बचाने के लिए किनारे में ट्रेंड तैराक बैठे रहते हैं)
लोग छटपटाते हैं… दो चार घूंट पानी पीते हैं..
उसके बाद खुद ही तैरना सीख जाते हैं.
मतलब कि… अगर तैरना सीखना है तो पानी में उतरना ही होगा और दो चार घूँट पानी पीना ही होगा.
जिस इंसान को दो चार घूँट पानी पीने से परहेज है.. और, उसे धकेल देने पर लगता है कि…
फलनवा को हमको मारने के लिए पानी में धकेल दिया तो फिर वो तैराकी भूल ही जाए.
मेरे ख्याल से मोई भी… हिनू समाज को तैरना ही सिखा रहे हैं.
उन्होंने किनारे में तैराक बिठा रखे हैं और हिनू समुदाय को डूबने लायक पानी में फेंक दिया है.
अब हिनू समुदाय… पानी में छटपटा रहा है और दो चार घूंट पानी पी कर बेचैन है.
उसे लग रहा है कि… मोई ने उसे जान से मारने के लिए दुर्भावना वश पानी में फेंक दिया है.
जबकि.. ऐसा है नहीं..
मोई जी चाहते हैं कि… उनके ट्रेंड तैराकों की मौजूदगी में हिनू समुदाय तैरना सीख जाए.
क्योंकि… नौकरी का क्या है..?
आज है तो कल नहीं भी हो सकती है.
मान लो… आज हिनू समुदाय को पानी में धकेलने के बजाए मोई के ट्रेंड तैराक ही सब काम कर लेंगे.
लेकिन, कल को जब मोई और योगी नहीं रहेंगे तो फिर पानी में डूबते हिनू समुदाय को कौन निकालेगा ???
इसीलिए… अगर आप बाढ़ग्रस्त इलाके में रहते हैं जहाँ कभी भी बाढ़ आने का अंदेशा रहता हो..
तो, वहाँ जान बचाने का सबसे अच्छा तरीका है कि… लोगों को तैरना सिखा दो..
और, लोगों का पानी से भय खत्म कर दो.
ताकि… अचानक आये बाढ़ के समय यदि NDRF की टीम थोड़ी देर से भी पहुंचे तो तबतक आप अपने तैरने की स्किल के बदौलत जिंदा रह सको.
वैसे भी… NDRF की टीम के सदस्यों की संख्या कभी किसी शहर के आबादी के बराबर नहीं हो सकती है कि बाढ़ के समय एक एक नागरिक को बचा लिया जाए बिना एक भी केजुअल्टी के.
लेकिन, अगर नागरिक तैरना जानेंगे तो उन्हें NDRF टीम की उतनी जरूरत नहीं रह जायेगी..
और, सरकारी सहायता सिर्फ… पुनर्वास एवं खाद्यान्न के लिए ही पड़ेगी.
फिर भी… अगर किसी समुदाय को तैरना सिखाना भी उन्हें पानी में धकेल के डुबाने जैसा लग रहा है..
और, वे तैरना सीखने की जगह ट्रेनर को ही गाली दे कर भगाने पर आमादा हैं.
तो फिर… उस समुदाय का भगवान ही मालिक है.
जय महाकाल…!!!
सतिश कुमार द्वारा यह लेख लिखा गया है