मैने परसों रात को नोएडा के एक मल्टीप्लेक्स में #TheKashmirFiles देखी और देखने से पहले, मेरी अपने आप से प्रतिबद्धता थी की इस फिल्म को देखने के बाद, इसपर एक लेख लिखूंगा। मैने यह भी मन बना रक्खा था की मैं विवेक रंजन अग्नोहत्री निर्देशित ‘द कश्मीर फाइल पर कोई, सिर्फ विषय आधारित प्रतिक्रिया नही दूंगा बल्कि उसके सभी सिनेमेटिक पहेलुओं को लेकर लिखूंगा।
लेकिन मैं नही लिख पा रहा हूं।
मुझे फिल्म के थिएटर से निकले लगभग 40 घंटे हो गए है लेकिन मैं अभी तक लेखन के लिए शब्दों को भावनाओं के अनारूप ढालने का साहस नहीं कर पा रहा हूं क्योंकि मैं अभी तक आंदोलित, स्तब्ध और हीनता के बोध से निमंगामी हूं! मैं समझता हूं की मैं अभी तक इतना प्रकृतिस्थ नही हो पाया हूं की बिना घृणा और आक्रोश के भाव से मुक्त होकर, कश्मीर फाइल पर अपने लेखन को शब्द दे पाऊं।
आज, भले ही भावनाओं के अंधड़ से अज्ञ, मेरी लेखनी दरिद्र हो गई है लेकिन शीघ्र ही जब मैं अपने अंदर हिंदुओं के सामूहिक अपराधबोध को आत्म करने का सामर्थ्य जुटा लूंगा तो इस पर विस्तार से लिखूंगा।

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