संसार में अनादि काल से सबसे ज़्यादा बोलने वाला झूठ है कि सभी मनुष्य बराबर होते हैं. ऐसा कभी नहीं रहा. हाँ यह चरस समय समय पर क्रांति अवश्य करवाती रही है. पर इस क्रांति का परिणाम सदैव यही रहा कि एक नए तरीक़े का पावर स्ट्रक्चर बनाया जाए.
सदियों पूर्व आदि काल में जो मनुष्य ज़्यादा ताक़त वर होता था, उसी की चलती थी. तभी कहा जाने लगा जिसकी लाठी
उसकी भैंस.
फ़िर जब मेटल एज आई तो फ़िज़िकल ताक़त की जगह ले ली आयुध में पारंगता ने. जो व्यक्ति धनुष / तलवार चलाने में ज़्यादा पारंगत होते थे, समाज में उनका दर्जा अन्य से श्रेष्ठ माना गया.
धीमे धीमे मनुष्यता विकसित हुई. मनुष्य दिमाग़ से चलने लगा, और दिमाग़ से फिजकल बल वाले और आयुध वाले मनुष्यों को कंट्रोल करने लगा. इस युग में जिनके पास दिमाग़ था वह राजाओं के मंत्री आदि बने, वह श्रेष्ठ माने गए. उन्होंने आम जनता पर राज किया.
फ़िर आया संवैधानिक युग. इस युग में तो संविधान ने ही मान्यता दे दी ताकतवर और कमजोर की परिभाषा को. अब दिमाग़ / ताक़त बहुत मायने रखना बंद हो गई, बल्कि यह हुआ कि संविधान के अनुरूप शिक्षा लो, डिग्री लो, अफ़सर बनो पैसे बनाओ तो अलग क्लास. नहीं पढ़े तो लेबर बनो लोअर क्लास. अब क्लास पैसे बेस्ड हो गए और पैसे बनाने का सिस्टमटिक तरीक़ा संविधान में दिया शिक्षा.
संवैधानिक युग में बच्चों की शिक्षा सबसे हाई रिटर्न देने वाला निवेश है पैसे के मामले में और पावर के मामले में भी. अक्सर लोग बोलते मिलते हैं कि अगर टैलेंट होता है तो गाँव के पढ़े भी ias बन जाते हैं. निहसंदेह ऐसा होता है पर यह इक्सेप्शन होते हैं. सामान्य जीवन औसत से चलता है और एक औसत व्यक्ति का life स्टाइल अच्छा करने का, पोवेरफुल्ल बनने का सबसे आसान तरीक़ा शिक्षा ही है.
इस चरस में कभी न पड़िए कि सब मनुष्य बराबर हैं, कोई सरकार आकर हमें बराबरी का हक़ दिलाएगी. उल्टे पढ़ लिख कर पैसे कमा कर खुद पोवेरफुल्ल बनिए और जेनेरल क्लास से ऊपर एलीट क्लास में आइए, लोकतंत्र ने यह आसान कर दिया है. जितना खर्च कर सकते हैं, उससे एक लेवेल ऊपर जाकर, उधार लेकर / दिला कर बच्चों को शिक्षित करें. बस कुछ ही वर्षों में कई गुना रिटर्न भी मिलेगा.