खानदानी चोर ने इस बीच शायद कुछ ऐसा कहा है, जिसे सुनकर (और देखकर भी) कुछ सिकुलर बीमारों को चरम-सुख-लब्धि हो गयी है और पर-गत-सील लोग अश-अश कर गश खाकर गिर गए हैं। जब बहुत शोर सुना तो दस-बीस सेकंड उसे सुना। सुनकर मेरा आकलन:-
-खानदानी चोर ने कोई नयी बात नहीं कही है। उसके परनाना से लेकर दादी, बाप और मां तक ने जिस देश-विरोधी विचार को पनपाया-अपनाया, उसी को यह थोड़ा आगे लेकर बढ़ा है। 1947 में भयावह हिंदू-विरोधी कत्लेआम की समर्थक कांग्रेस ने अपनी सत्ता-लिप्सा में कम्युनिस्टों के विषवृक्ष को खूब खाद-पानी दिया। वह कम्युनिज्म भारत को 25 विभिन्न सभ्यताओं को एक ढीला समूह मानता है। कहना न होगा कि यह निहायत अश्लील विचार पाश्चात्य रुग्ण विचार का एक प्रसरण मात्र है, जिसके सबसे बड़े मुरीद हमारे प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू और फिर उनकी बिटिया थीं।
–पाड़ा जब भी ऐसी औचक बातें बोलता है, तो जानिए कि वह अपनी सत्ता के लिए इस देश के साथ कुछ भी, मने कुछ भी करने को तैयार है। चीन के साथ उसकी पार्टी एक अ-संवैधानिक समझौता कर चुकी है, उसकी मां पूरे दस साल तक इस देश की प्रधानमंत्री की तरह राज कर चुकी है और न जाने उसने क्या-क्या समझौते किए, न जाने उसने क्या-क्या वेटिकन को बेचा?
–पाड़ा को केवल हंसने की बात न समझिए। वह बेहद खतरनाक हो चुका है और अगर वह तमिलनाडु और केरल के बहाने एक संप्रभु राष्ट्र को तोड़ने की सोच रहा है, तो यह रोने की बात है। इस देश का दुर्भाग्य है कि एक खानदानी चोर कुछ भी आंए-बांए बक रहा है और वह जेल की जगह इस देश की सर्वोच्च जगह पर है, इस देश का एक तबका उस पर ऑर्गैज्मिक बलिहारी ले रहा है और वह इस देश का मोस्ट सूटेबल प्रिंस है..
–उससे डरिए, इस देश के भविष्य से डरिए।