Home लेखक और लेखसतीश चंद्र मिश्रा क्योंकि लातों के भूत, बातों से नहीं मानते

क्योंकि लातों के भूत, बातों से नहीं मानते

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क्योंकि लातों के भूत, बातों से नहीं मानते…
सैकड़ों साल पुरानी मज़हबी परम्पराओं का ही पालन करना क्योंकि जरूरी है, इसीलिए उडुपी वाली बिटिया ने रायता फैला दिया है, वो कॉलेज की ड्रेस के बजाए हिज़ाब पहनेगी। मैं उस उडुपी वाली बिटिया द्वारा फैलाए गए रायते का पूरा समर्थन करता हूं।
लेकिन मेरे समर्थन की शर्त केवल एक है, यही शर्त मेरी मांग भी है कि, बिटिया अगर रायता फैला रही है तो फिर इस मज़हबी रायते को हर जगह पूरी तरह फैलाए। इसके लिए सबसे पहले वो काफिरों द्वारा बनायी और बेची जा रही, काफिरों की सवारी “स्कूटी” या अन्य किसी वाहन का इस्तेमाल बंद कर के गदहा, गदही, ऊंट, ऊंटनी पर सवार होकर कॉलेज और बाज़ार जाना शुरू कर दे।
और सैकड़ों साल पुरानी मज़हबी परंपराओं को ध्यान में रखते हुए यह ऐलान कर दे कि मैं शादी उसी से करूंगी जिसकी तीन पत्नियां पहले से होंगी और मैं उसकी चौथी पत्नी बनूंगी।
1400 साल पुराना रायता फैलाने की ऐसी सूची तो बहुत लंबी है। लेकिन कम से कम इन दो नियमों का पालन तो उडुपी वाली बिटिया शुरू कर के दिखा ही दे। और अगर ऐसा ना करे। केवल हिज़ाब वाला मज़हबी रायता, केवल स्कूल में फैलाने पर अड़ी रहे तो महिला पुलिस के हवाले कर बिटिया के नितम्ब पर तबियत से लठ्ठ बजने चाहिए, क्योंकि लातों के भूत, बातों से नहीं मानते।

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