गृहलक्ष्मी
प्रयागराज सिटी से कुछ दूरी पर बारा तहसील से थोड़ा पहले एक गांव है जहाँ अधिकतर “पटेल” लोगों का निवास है, गांव का नाम याद नहीं है।
कहानी है वहीं के कुछ परिवारों की है , जिनकी कभी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं हुआ करती थी।
परिवार बहुत ही बड़े और संयुक्त हुआ करते थे , आज की तरह नहीं जैसे पिता के जाने के बाद जल्दी बटवारा कर लिया जाता है।
लगातार सूखा ने हालत खराब कर रखी थी, घर के पुरुषों को समझ आ चुका था कि यदि वो घर ही रह गए और सिर्फ खेती किसानी में ही रह गए तो इतने बड़े परिवार का खर्चा चलाना मुश्किल हो जाएगा।
घर की महिलाओं ने आश्वासन दिया कि आप लोग जाओ हम सभी घर सम्हाल लेंगी तनिक भी चिंता मत करो।
जिस प्रकार से माँ दुर्गा सभी शस्त्रों के साथ सुसज्ज रहती हैं वैसे ही ग्रामीण महिलाएं भी माँ अन्नपूर्णा माँ दुर्गा की तरह अपने हाथों में हसिया, खुरपी , कटारी, कुल्हाड़ी , बेलन , चिमटा , चौका लेकर रक्षा और भरण पोषण का दायित्व निभाती हैं।
वो काले अक्षरों में लिखी किताबें तो नहीं पढ़ी होती पर किताबों में लिखी ज्ञान की अक्सर बातें उनके ठेठ अनुभव से होकर गुजरती है। पाई पाई का हिसाब रखती हैं और पाई पाई का महत्व समझती हैं।
परिवार में स्त्री पुरूष के सामंजस्य का पहिया जब चल पड़ता है तो निश्चित तौर पर वह परिवार विकास की ओर अग्रसर होने लगता है। लक्ष्मी उस स्थान पर वास करने लगती हैं और एक नई स्थिति का निर्माण होता है. !
जिस प्रकार से AC कमरों में बैठ कर वाइन पीते हुए लोग कहते हैं…. देश में बड़ी असहिष्णुता बढ़ गयी है , जिस प्रकार से कुछ महिलाएं चरम सुख के लिए मरी जा रही हैं तड़प रही हैं,
ऐसे चरम सुख का समय नहीं होता है कार्यशील महिलाओं को, उनके जीवन में सेक्स ईश्वर द्वारा प्रदत्त किया गया वंश को आगे बढ़ाने का वरदान मात्र होता है न कि चरमआनंद का विषय।
भोर में ही उठ जाने वाली वो ग्रामीण महिलाएं लगातार अपने घर गृहस्थी को बांधे रहती हैं उन्हें पता है कि उनका पति जो बाहर कमाने गया है न जाने कितनी रातों को ठीक से सोया नहीं होगा।
उस परिवार ने ईश्वरीय अनुशासन में जीवन व्यतीत किया जिसका फल ईश्वर को उन्हें देना ही था और आज उनके पास प्रयागराज सिटी में एक अच्छा मकान है, नई पीढ़ी के बच्चे अच्छी शिक्षा ग्रहण कर रहें हैं।
जिस घर की महिलाएं गृह लक्ष्मी रूप अपना लेती हैं वो परिवार कभी पतन की ओर जाता ही नहीं…
मैं चाहती तो पुराणों धर्म शास्त्रों से , इतिहास से ऐसे उदाहरण लाकर कालजयी पोस्ट लिख सकती थी लेकिन क्या अर्थ ..!
वो बहुत पहले का गुजरा हुआ अतीत है लेकिन इन ग्रामीण, या शहर की उन महिलाओं की बात करना आज अत्यंतआवश्यक है जिन्होंने अपने परिवार को स्वर्ग बना रखा है……
ध्यान रहे ये गांव की महिलायें अनपढ़ नहीं होती बल्कि अनपढ़ वो होती हैं जो वासना..! वासना..! वासना ..! सुख, सुख सिर्फ यही चिल्लाती रहती हैं और अंत में इन्हें न चरम सुख प्राप्त होता है और न ही शांति मिलती है।
भला वासना से किसी की तृप्ति हुई है ..जो इनकी हो जाएगी..!!!
मैं नई पीढ़ी की गांव देहात या शहर की उन लड़कियों से कहना चाहूंगी कि आप अपने अगल बगल ,अपने घर की ऐसी महिलाओं को आदर्श बनाओ जिन्होंने पूरे परिवार को जोड़ रखा है , उन्हें नहीं जिन्होंने अपना ही घर तोड़ रखा है ..!
आपकी सारी डिग्री , सारी सफलता व्यर्थ चली जायेगी यदि आपने गलत का चुनाव कर लिया तो फिर जीवन में सिर्फ पश्चाताप ..! पश्चाताप..!..पश्चाताप के अतिरिक्त कुछ भी नहीं बचेगा और उस पश्चाताप से कुंठा की ऐसी अग्नि निकलेगी कि बाकी का बचा सुख भी उसमें जलकर भस्म हो जाएगा..!
जीवन आपका तो निर्णय भी आपका… !