“दृष्टि” और “दृष्टिकोण”:
देखा समझा जाना औऱ व्यक्त किया
इस संसार में किसी भी वस्तु को देखने समझने और व्यक्त करने के अनंत तरीके हैं और यही अनंत तरीके विचारधारा और दृष्टिकोण का पर्याय बनते हैं।
हर व्यक्ति का यही मानना है कि उसका दृष्टिकोण ही सही है बाकी सभी लोगों का दृष्टिकोण गलत है और वह निरंतर दूसरों को बताता रहता है कि तुम गलत हो और मैं सही हूँ….जबकि यह संसार सागर उस सागर के समान है जिसमें अनेकों रत्न और वस्तुएं समाई हुई हैं,
जब किसी के हाथ शंख लगा तो उसने कहा समुद्र में सिर्फ शंख ही मिलते हैं, किसी के हाथ मोती लगी तो किसी ने कहा समुद्र में सिर्फ मोती होते हैं।
दोनों ही अपनी अपनी बात पर अडिग होकर लड़ते हैं और स्वयं को सच्चा बताते हैं।
दोनों ही सागर को सीमित करना चाहते हैं अगर वो सागर को अनंत बताते भी हैं तो सिर्फ इस भाव में कि जिस अनंतता की मैने व्याख्या की है मात्र वही अनंतता है ।
मनुष्य के पतन का कारण उसका अज्ञान नहीं बल्कि उसका असंतुलित ज्ञान है।