पूरा फेसबुक सरस्वतीपूजा और ज्ञानपूजा के प्रदर्शन से बह रहा है।
इसे ही अति कहते हैं।
संतुलन साधना कोई हमारे पूर्वजों से सीखे जब उन्होंने इस दिन को ज्ञान की उपासना के साथ साथ कामदेव की उपासना के रूप में भी देखा।
सरस्वती पूजा के बाद मदनपूजा!
विवेक द्वारा नियंत्रित कामवासना!
वासंती परिधान में सजे युवक युवतियां जोड़ों के रूप में जब सरस्वती पूजा व भिक्षुकों को दान देने के पश्चात उद्यानों में प्रेमालाप करते दिखते होंगे तब विवेक नियंत्रित काम के उदात्त रूप को देख क्या देव देवियां इस धरा पर जन्म लेने को उत्सुक न होते होंगे?
तनिक कल्पना कर देखिये, इ स्लाम के ध्वंस, स्त्री को भोग व अपहरण की वस्तु बना देने से पूर्व भारत में ‘विवेक व काम’ का कितना सुंदर समन्वय था।
पिछले एक हजार साल की मु स्लिम कुसंगति के कारण हम भी ह्रदय से पाखंडी हो चुके हैं अतः न तो सहज रुप से प्रेम निवेदन कर पाते हैं और न सहज रूप से प्रेमालाप।
सरस्वतीपूजा का भक्तिअभिनय तो थोड़ी देर बाद डीजे पर अश्लील गानों पर थिरकते युवाओं के वीडीओ के रूप में प्रकट होगा।
अस्तु!
अभी तो सरस्वतीपूजा के रूप में नवशैक्षणिकसत्र के प्रारंभ की शुभकामनाएं और मदनोत्सव की बधाइयां।
जिन जिन को मदनोत्सव की इस छूट का लाभ उठाना हो वे प्रेमनिवेदन कर सकती हैं और मैं भी अपनी प्रिंसेस को मदनोत्सव पर अपना प्रेम निवेदित करता हूँ।
#सनातन_कालयात्री_जी की दुःखद अनुपस्थित में फागुन का शुभारंभ मुझे करना पड़ रहा है।