Home विषयपरम्पराए रंगों के त्योहार होली की पुनश्च अनंत-अशेष शुभकामनाएँ

रंगों के त्योहार होली की पुनश्च अनंत-अशेष शुभकामनाएँ

by Pranjay Kumar
500 views
रंग, रस, रूप, गंध के बिना जीवन नीरस और बेस्वादा रह जाता है। सनातन संस्कृति में इनमें से किसी की उपेक्षा नहीं की गई। जीवन का उत्सव है सनातन। जीवन के हर दिन, हर पल को उल्लासमय बनाना हो तो सनातन की ओर लौटिए, सनातन पर गौरव कीजिए।
प्रकृति विविधवर्णी है। प्रकृति के हर रंग को सनातन अंगीकार करता है। बल्कि सनातन तो सबसे गाढ़ा, सबसे प्रगाढ़ नेह के रंग को मानता है। नेह का यह रंग इतना पक्का, इतना प्रगाढ़ होता है कि छूटे नहीं छूटता।
मैंने होली पर अभी-अभी लिखे अपने एक लेख में कहा था कि हमारे त्योहार हमारी चेतना, हमारी स्मृतियों में गहरे पैठे हैं।
पर यहाँ याद दिला दूँ कि होली विस्मरण का भी उत्सव है। सबको भुलाकर उस पल को जीने का उत्सव! कृत्रिम आभामंडल से बाहर निकल, कुछ होने के एहसास को भूलकर पूरे मौज और मस्ती में बहने का उत्सव! सब प्रकार के वर्ग-वर्ण-भेद को भुलाकर समरस हो जाने का उत्सव! आयु के दबाव और पद के प्रभाव को भूलकर सहज और स्वस्थ होने का उत्सव!
केवल स्मृति ही नहीं, कहीं गहरे में विस्मृति भी एक मुक्ति है दोस्तों।
और अंतिम बात, अपने त्योहारों पर किन्हीं तथाकथित ज्ञानियों के कहे पर कान मत धरिए। ये जीवन से ऊबे हुए लोग हैं। इनका सारा ज्ञान कूड़ा है। इनकी सरोकारधर्मिता नकली और बिकाऊ है। सनद रहे, हमारा कोई त्योहार सरोकारविहीन नहीं। हमारे हर त्योहार के पीछे गहरा चिंतन, गहरी सामाजिकता और गहरी सरोकारधर्मिता है। वह सदियों के चिंतन से निकला सर्वोत्तम निकष और निष्कर्ष है। ऐसा निकष जिस पर कसकर मनुष्यता ऊँचा उठती है, मनुष्यता परवान चढ़ती है, जीवन सार्थक और सोद्देश्य हो उठता है।
हमारे त्योहार हमें ‘मैं’ से ‘हम’ तक ले जाने वाले सबसे सशक्त माध्यम हैं।

Related Articles

Leave a Comment