1. लता जी अपने एक इंटरव्यू में बता रही थीं कि ‘एक बार वो, अनिल विश्वास और दिलीप कुमार ट्रेन में ट्रैवल कर रहे थे। अनिल जी ने यूसुफ साहब से कहा कि, दिलीप ये लड़की बहुत अच्छा गाती है। तो उन्होंने कहा कि क्या नाम है? मैंने कहा लता मंगेशकर।
मराठी हो? मैंने कहा हां।
लता मंगेशकर ने बताया कि यूसूफ साहब बोले ‘मराठी लोगों की उर्दू थोड़ी दाल-चावल जैसी होती है।’
लता जी बोलीं कि यूसुफ साहब की टिप्पणी के बाद ही उन्होंने फैसला किया था कि वो उर्दू सीखेंगी। महबूब नाम के एक मौलवी उस्ताद को रोज बुलाकर उर्दू की बारीकियाँ सीखीं। इसके कुछ समय बाद जब फ़िल्म लाहौर के गाने ‘दीपक बग़ैर कैसे परवाने जल रहे हैं,’ गीत की रिकार्डिंग लता जी ने शुरू ही की थी तो जद्दनबाई जी अपनी बेटी नरगिस के साथ आ गयीं। रिकार्डिंग के बाद जद्दनबाई ने लता को बुला कर कहा, “माशाअल्लाह क्या ‘बग़ैर’ कहा है। ऐसा तलफ़्फ़ुज़ हर किसी का नहीं होता बेटा ..
2. लता जी ने अपने कई इंटरव्यू में बताया है कि बॉलीवुड में वो जिसे सबसे करीब मानती हैं वो दिलीप कुमार जी हैं। दिलीप कुमार भी लता जी को अपनी छोटी बहन मानते थे। भाई-बहन की इस बॉन्डिंग की एक मजेदार कहानी है-
1974 में लंदन के रॉयल एल्बर्ट हॉल में लता जी अपना पहला कार्यक्रम कर रही थीं तो उसकी शुरुआत करने के लिए दिलीप कुमार को बुलाया गया था। लता जी पाकीजा के गाने ‘इन्हीं लोगों ने ले लिया दुपट्टा मेरा’ के साथ इस कार्यक्रम की शुरुआत करने जा रही थी। जब दिलीप कुमार को ये पता चला तो वह नाराज हो गए। लता जी के पास जा कर बोले, ‘यह गाना आप क्यों गाना चाहती हैं, जबकी इसके बोल उतने शाईस्ता नहीं हैं’ इस पर लता जी ने दिलीप कुमार को समझाया कि यह गाना बेहद लोकप्रिय है और लोग सुनना चाहेंगे। आप मुझ पर भरोसा रखिये ..
लोग सामान्य तरीके से कह देते हैं कि इस व्यक्ति की भरपाई करना मुश्किल है लेकिन सच यही है कि जगजीत सिंह, दिलीप कुमार और अब लता मंगेशकर जी वो तीसरा नाम हैं, जिनकी जगह सच में कोई नहीं ले सकता।
चलते-चलते पंडित जसराज का एक किस्सा और याद आ गया कि एक बार वो बड़े गुलाम अली ख़ाँ से मिलने अमृतसर गए, वो लोग बाते ही कर रहे थे कि ट्राँजिस्टर पर लता का गाना ‘ये ज़िंदगी उसी की है जो किसी का हो गया’ सुनाई पड़ा।
ख़ाँ साहब बात करते करते एकदम से चुप हो गए और जब गाना ख़त्म हुआ तो बोले, ‘कमबख़्त कभी बेसुरी होती ही नहीं..