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लता मंगेशकर से घृणा और नफ़रत करने वाले लोग

दयानंद पांडेय

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क़ायदे से लता मंगेशकर से घृणा और नफ़रत करने वाली फोर्सेज को उन शायरों , कवियों , संगीतकारों , फ़िल्म निर्देशकों , हीरो , हीरोइनों से भी उतनी ही नफ़रत करनी चाहिए , उतनी ही घृणा करनी चाहिए , जितनी वह लता मंगेशकर से करता हुआ दिख रहे हैं। जिन शायरों , कवियों के लता ने गीत गाए। ग़ज़लें गाईं। जिन संगीतकारों के साथ गाए। जिन गायकों के साथ गाए। जिन निर्देशकों , जिन हीरोइनों , हीरो के लिए गाए। इस तरह कोई 80-90 प्रतिशत लोगों को फ़िल्म इंडस्ट्री से इन फोर्सेज को अपनी घृणा और नफ़रत के क़ारोबार में रखना पड़ेगा। बचेंगे वही जो लता के पहले के थे या लता के बाद हुए।
क्यों कि बिना लता मंगेशकर के तो कोई संगीत निर्देशक , कोई गीतकार , कोई फ़िल्म निर्देशक , हीरो-हीरोइन या गायक रहा नहीं। असल में घृणा और नफ़रत करने वाली यह फ़ोर्स , हिप्पोक्रेट फ़ोर्स है। ठीक वैसे ही जैसे , कोरोना वैक्सीन के ख़िलाफ़ हिक़ारत दिखाने वालों ने चुपके-चुपके वैक्सीन लगवा ली , यह घृणा और नफ़रत के दुकानदार भी लता मंगेशकर को सुनते हैं। यह बहुत बीमार लोग हैं। वैचारिकी के कोढ़ में कुढ़ते हुए सड़ गए हैं। वैचारिकी के खूंटे में बंधे तेली के बैल हैं। भेड़ चाल के अभ्यस्त लोग हैं। इन को डर है कि अगर लता मंगेशकर के प्रति अपनी घृणा नहीं परोसेंगे तो अपने बाप के नहीं रहेंगे। इन के लोग इन्हें हरामी घोषित कर देंगे। नाजायज औलाद बता देंगे। सो सब के सब प्रतिस्पर्धा में आ गए हैं। कि कौन ज़्यादा घृणा और नफ़रत परोसे। गोया कुर्सी दौड़ आयोजित हो यह बताने की कि अपने बाप की ही औलाद हूं। यह सिद्ध करने का यही समय है। अलग बात है कि इन लोगों के लिए इन दिनों ऐसा समय अकसर आता रहता है।
एक पियक्कड़ और बदमिजाज पत्रकार याद आ रहा है जो सेक्यूलरिज्म के नाम पर एन जी ओ के पैसे से इतना मुटा गया है कि अपने बाप का दिया नाम हटा कर नया नाम रख लिया है। विदेश यात्राएं बहुत करता है। कहीं किसी देश में घर भी ले चुका है। ज़ी न्यूज़ के एंकर रोहित सरदाना के निधन पर उस ने रोहित की बेटी से बलात्कार करने की गुहार कर दी। तो यह सभी लोग बलात्कारी लोग हैं। लता मंगेशकर के मरने के बाद अपनी घृणा और नफ़रत का इज़हार कर , देवी जैसी लता मंगेशकर और उन की अप्रतिम गायकी के साथ निरंतर बलात्कार कर रहे हैं।
सहमति-असहमति होती रहती है। पसंद-नापसंद भी। पर यह घृणा और नफ़रत ? इस के क्या मायने हैं भला ! ख़ैरियत बस यही है कि लता मंगेशकर के कोई बेटी या संतान नहीं है। नहीं यह बलात्कारी लोग , अपनी बीमार मानसिकता की बघार ज़रुर लगा देते। छी है ऐसे लोगों पर। लता मंगेशकर की गायकी छोड़िए , लोक कल्याण के लिए लता मंगेशकर ने कितने काम किए हैं , यह मूर्ख यह भी नहीं जानते। अपने पिता दीनानाथ मंगेशकर के नाम पर गरीबों के लिए लगभग निःशुल्क बड़ा सा कैंसर अस्पताल बनवाया है। जाने कितनों की चुपचाप मदद की है। लोक कल्याण के और भी कई काम लता मंगेशकर के खाते में। लेकिन यह मूर्ख नहीं जानते। हां , लता को श्रद्धांजलि देते समय शाहरुख़ खान थूक नहीं रहा , इस के बचाव में ज़रुर खड़े हो गए हैं यह लोग। पर लता मंगेशकर के ख़िलाफ़ जहर बदस्तूर जारी है।

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