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वो भी क्या जमाने होते थे.

by Nitin Tripathi
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वो भी क्या जमाने होते थे.

 

1997 में मैं लोधी कालोनी दिल्ली में रहता था. दिल्ली की पॉश कालोनी थी, हम एक साहब के घर में छत पर बने हुवे वन रूम बरसाती में किराए पर रहते थे. पास में ही सरकारी बंगले में रहता था दुर्दांत आतंकी, भारतीय सेना के अधिकारियों की हत्या करने वाला याशीन मलिक. भारत सरकार की ओर से उसे दिल्ली में बांग्ला मिला था, इतनी तगड़ी सुरक्षा मिली थी कि आज की तारीख़ में इतना भौकाल देश के गृह मंत्री का नहीं होता. जब वह नहीं भी होता था तो भी सौ डेढ़ सौ pac के जवान रखवाली करते थे उसके घर की हम सब को पहचान पत्र मिला था, वह दिखा कर ही अपनी गली में प्रवेश मिलता था. भारत के प्रधान मंत्री याशीन मलिक से सीधे मिलते थे.
बॉलीवुड फ़िल्मों में मानीशा कोईराला जैसे क्यूट आतंकी होते थे जिनका नाम मोईना / मेघना होता था जो भारतीय सेना द्वारा रेप किए जाने से आतंकी बनते थे. शाहरुख़ खान जैसे ऐक्टर आतंकी बनते थे. JNU हम सब युवाओं का फ़ेवरिट अड्डा होता था – हमारा इस लिए कि वहाँ boys और गर्ल्ज़ सेम हॉस्टल में रहते थे. पर ढेरों लोगों को वहाँ के नारे बहुत अट्रैक्ट करते थे. आज़ादी आज़ादी.
क़सम से देश में उस वक्त आतंकी होना गर्व की बात माना जाता था. ढेरों टीन एजर याशीन मलिक / शाहरुख़ खान एज आतंकी में अपना आदर्श देखते थे. कश्मीरी पंडितों के साथ क्या हुआ था, यह तो ज़्यादातर को पता ही न था, जिन्हें पता भी था उन्हें यही लगता था कि सही हुआ.
समय का चक्र बदला. आज वही याशीन मलिक तिहाड़ जेल में भारतीय सेना के अधिकारियों की हत्या के आरोप में बंद है. तीस साल बाद उस पर मुक़दमा दर्ज हुआ. काश्मीरी पंडितों की कहानी थे काशमीर फ़ाइल्ज़ घर घर तक उनके साथ जो अत्याचार हुवे उसकी कथा पहुँचा रहे हैं. आज भारत के युवा जानते हैं कि केवल अत्याचार होने से कोई आतंकी बन जाता तो लाखों कश्मीरी पंडित आतंकी बन जाते. JNU का टुकड़े टुकड़े गैंग इक्स्पोज़ हो चुका है. देश के आदर्श बदल चुके हैं. भारत के प्रधान मंत्री काशमीर फ़ाइल्ज़ की टीम से मिलते हैं.
जो मित्र लोकतंत्र में वोट की ताक़त का मज़ाक़ बनाते हैं, उन्हें देखना और समझना चाहिए कि आपका एक वोट कैसे देश की दशा और दिशा बदल देता है, यह बहुत बड़ा उदाहरण है.

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