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स्वतंत्रता संग्राम की धार

by रंजना सिंह
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स्वतंत्रता संग्राम की धार

जैसे स्वतंत्रता संग्राम की धार को कुंद करने को एक सर्जेंट को महात्मा बनाकर लैंड कराया गया,,जिसने न केवल उस समय के समर और राजनीति की दिशा दशा बदली अपितु भारत का इतिहास भूगोल और भविष्य नष्ट करने की भी पूरी व्यवस्था कर दी…..

ठीक ऐसे ही जब देखा कि मारकाट भय और प्रलोभन के व्यापक प्रभाव के बाद भी भारी संख्या में हिन्दू बचे ही हुए हैं जो प्रत्येक विषमताओं के बाद भी धर्म साधे हैं,, तब सत्तासीन अंग्रेजों के उत्तराधिकारियों ने दूरदर्शी योजना बनाकर कन्वर्जन से बचे हिंदुओं को एक नए धर्म में प्रवेश कराया,जिसमें अपना नाम, पहचान या धार्मिक कर्मविधान त्यागने की आवश्यकता नहीं थी, पर वह बुद्धिमान प्रगतिशीलता और श्रेष्ठत्व का सम्मान सर्टिफिकेट पा सकता था।

यह नया धर्म था “सेक्युलरिता”….जो हिन्दू इस ब्रैकेट में स्वयं को नहीं लाता था/है, वह निःकृष्ट कम्यूनल असहिष्णु स्वयमेव सिद्ध है।यह वातावरण पिछले 7-8 दशक में बनाया गया है।
हिन्दी हिन्दू से घृणा करना, उसे हीन दोषपूर्ण और तुच्छ मानना और अवसर मिलते ही दूत या पूत समूह में सम्मिलित हो जाना- यह सेकुलड़ धर्म की विशेषता/लच्छन हैं।
सेकुलड़ वे महान बुद्धिमान हैं जिन्हें “उदारता और सेक्युलरिता” समानार्थी लगते हैं।हिन्दुओं का मारा मिटाया जाना जिन्हें महत्वहीन लगता है और इन्हें पूरा विश्वास है कि ऐसा कोई दिन आ ही नहीं सकता जब दूत पूत इन्हें कोई हानि पहुँचा सकते हैं।

दुर्भाग्य की बात यह है कि इनकी जनसंख्या आज अपने देश में सबसे बड़ी है। ये महान सेक्युलर हिन्दूद्रोही, मज्जबियों के आतताईपने के मौन समर्थक और आत्मघाती हैं।
कहीं कम्यूनल न ठहरा दिए जाएँ, इस भय से लगभग सारा ही हिन्दू समुदाय सन्तप्त है।जो लोग स्थिति की भयावहता को देख समझ पा भी रहे हैं,उनमें से अधिकांश या तो दूसरे के घर में पैदा होने वाले भगतसिंह की प्रतीक्षा में हैं या सामूहिक रूप से संगठित न होने के कारण प्रतिकार का प्रयास करते भी हैं तो पिट पिटा जाते,बड़ी सफलता नहीं पाते हैं।
एक तरफ से तेजी से बिगड़ता जा रहा डेमोग्राफिक सन्तुलन और दूसरी तरफ ये विवेकहीन सेकुलड़,,,अल्पसंख्यक हिन्दू बहुत बड़े संकट में हैं।जो जहाँ हैं,जो कुछ भी कर सकते हैं सम्पूर्ण समर्पण से करें,,,तो ही हिंदुत्व रक्षण हो सकता है,,अन्यथा तीन से चार दशक नहीं लगेंगे पूरे भारत को कश्मीर बनने में।

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