हम भारत के लोग अद्भुत विस्मृति से ग्रस्त हैं। इतनी खतरनाक कि हमारा सर्वनाश सामने हो, फिर भी हम भूल जाते हैं। भूलते ही नहीं, आत्ममुग्ध इतने हो जाते हैं कि अपनी ऐतिहासिक गलतियों और भूलों पर भी इतराते फिरते हैं।
यूपी के चुनाव में भांति-भांति की बातें, वचन-कुवचन हो रहे हैं (सुवचन तो अब कहीं से सुनने को नहीं मिलता), लेकिन मज़ा मुझे तब आता है, जब लोग माननीय अखिलेश यादव को अगला सीएम बनाते और उन्हें बेहतरीन विकल्प बताते हैं। भूल जाते हैं लोग कि अखिलेश के समय उल्टा-प्रदेश की क्या हालत थी, भूल जाते हैं लोग यादव सिंह और उसकी सैंकड़ो करोड़ की घोटाले से अर्जित संपत्ति, भूलते हैं हम सैफई नाच को, भूलते हैं खुलेआम गुंडागर्दी को, भूलते हैं होली पर वाराणसी में लगे पोस्टर को और भूल जाते हैं बिजली-पानी से लेकर हरेक चीज की बदहाली को।
लोग बहनजी के राज को इस तरह पेश करते हैं, मानो वह लॉ एंड ऑर्डर के मामले में मेयार-ए-जन्नत था, लेकिन भूल जाते हैं लोग जब वह आला अफसरों से जूते साफ करवाती थीं, भूल जाते हैं लोग लखनऊ में बनाए उनके शानदार मकबरों को, जिनमें अब तो कई फिल्मों की शूटिंग भी हो चुकी है, भूल जाते हैं लोग नोटों की उस मोटी माला को….।
पन्ने रंग जाएं, सपा-बसपा शासनकाल के उत्तर प्रदेश में हुए कारनामों को दिखाने में। हां हां..जानता हूं, आपके पास हाथरस से कासगंज और लखीमपुर तक के कारनामे हैं, लेकिन प्रभु…ठीक यही तर्क देकर बिहारी भाई दोनों लखेड़े लालू-सुतों को मुख्यधारा में ले आए…आपको भी अगर यही करना है, तो कोई बात नहीं।
अखिलेश शासनकाल में भैया आजमगढ़ में पोस्टेड थे और मैं कई महीने जाकर रहा था वहां। मैंने नंगा नाच देखा है, मुझे मत सिखाइए कि समस्या क्या है…। प्रभु, 22 करोड़ के राज्य में शून्य अपराध तो असंभव है, लेकिन जिसने अपराध को कानून बना दिया, उसको विकल्प बताना, जिसने अपवाद को ही नियम बना दिया, उसको विकल्प की तरह सोचना…