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पेंशन, देशभक्ति, अपर्याप्त ट्रेनिंग जैसे वाहीयाद संदेहों पर अब कुछ लिखना समय की बर्बादी है लेकिन एक संदेह कुछ हद तक जैनुअन है और वह है बड़ी संख्या में जेहादियों के प्रवेश की आशंका।
इसमें कुछ हद तक सच्चाई है लेकिन कुछ तथ्य हैं जिससे संभवतः आप न जानते हों या जानते हों तो विस्मरण कर गये हैं।
-यह खतरा सेना में तब भी था और आज भी है लेकिन इस विषय में मिलिट्री इंटेलिजेंस काफी सतर्क रहती है। असली खतरा तो उन सैक्यूलर कमीशंड अधिकारियों से ज्यादा है जिनमें जवानों को ले जाने के लिए एक ड्राइवर को चुनने का शऊर नहीं हैं जबकि अच्छी तरह से जानते हैं कि हर मु स्लिम के अंदर एक जेहादी होता है।
-सामान्य जवानों के अतिरिक्त अधिकारियों में पहचान छुपाकर भी भर्ती होते हैं। उदाहरण रवीन्द्र कौशिक का है तो आप स्वयं सोचिये क्या इधर ऐसे अधिकारी नहीं होंगे?
इसीलिये सामान्य जवानों की भर्ती के समय उनके इतिहास व फैमिली बैकग्राउंड को बहुत खंगाला जाता है।
-भारत में अधिकांश मुस्लिम लड़के, भारत की जलवायु के विपरीत अत्यधिक मात्रा में मांस-मछली, अंडे आदि का सेवन करते हैं जिससे उन्हें पाचनतंत्र जनित बीमारियां जैसे बवासीर बहुतायत में होता है। ऐसे लोगों को सेना स्वीकार नहीं करती।
-भारत की सेना का अधिकांश हिस्सा गांवों से आता है और वह भी राजपूत, जाट, मराठा तथा यादव, गुर्जर आदि ओबीसी जातियों से जिनकी शारीरिक संरचना के सामने शहरों की तंग बस्तियों से निकले ये टेढ़े मेढ़े लक्कड़ कहीं नहीं ठहरते। एकाध का शरीर होता भी है तो वह हिंदू लड़कियों को पटाने के लिए स्टेरॉयड ले लेकर फुलाया गया शरीर होता है, वहाँ स्टेमिना नहीं होती।
-अगर आपने नोट किया हो कि विश्व में किसी भी आतंकवादी कैम्प में भारत के मु स्लिमों की उपस्थिति कभी नहीं देखी गई क्योंकि इनमें से कोई भी उन आतंकवादियों के शारीरिक व स्टैमिना के मापदंडों पर खरा नहीं उतरा। हाँ, आई एस एस ने उन्हें अपने जेहादियों का गिलमा जरूर बनाया।
तुर्क व मुगल काल तक में उनकी सेना या तो ईरानी, तुर्क व पठानों से बनी होती थी या राजपूत, जाट व मराठा मनसबदारों के युवकों से।
हिंदुस्तानी मु स्लिम अपनी कमजोर शारीरिक संरचना के चलते तुर्क-मुगल काल में भी चोबदार या हुक्का उठाने वाले होते थे और आज भी हैं।
इसलिये भर्ती में ये कभी भी हमारे लड़कों के आसपास भी नहीं ठहरते।
-आनुवंशिक रूप से ये बहुत गंदे व बदबूदार होते हैं और सेना छोड़िये, अर्द्धसैनिक बलों की भर्ती में टेंट में से दहाड़ती आवाज आते सुनी थी- ” साले @#$% धोने का होश नहीं है सिपहिया बनने चले हैं।”
-आप उनकी आक्रामकता को देखकर आशंकित होते हैं परंतु वास्तव में यह आक्रामकता उनकी सामूहिकता में निहित है। अकेला-दुकेला मु स्लिम शरीफ ही नहीं दयनीय जीव भी होता है।
इनकी आक्रामकता केवल पत्थर फेंकने और किसी अकेली लड़की को छेड़ने तक ही होती है, सैन्य भर्ती में दौड पूरी करने में नहीं।
इसके अलावा सैन्य प्रशिक्षण तो वे तब भी ले ही रहे हैं, भले ही केरल के जंगलों में पीएफआई को अल कायदा के सदस्यों द्वारा क्यों न हो परंतु वह कभी भी उस श्रेणी का नहीं हो सकता क्योंकि अच्छी तलवार के लिए अच्छा लोहा और सान देने के लिए अच्छी कल दोनों की जरूरत होती है।
बाकी चिल मारिये और अगर बहुत चिंता है तो कल से पुशअप मारकर अपनी तोंद को कम करने की कोशिश कीजिये।
मोदी को योगी के लिए योद्धा तैयार करने दीजिए।

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