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अमेरिका से बड़ा ग़ुलाम देश दुनिया का कोई नहीं है.

Nitin Tripathi

by Nitin Tripathi
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यदि देखा जाए तो अमेरिका से बड़ा ग़ुलाम देश दुनिया का कोई नहीं है. किसी हिस्से में इंग्लैंड से लोग आए, क़ब्ज़ा किया, मूल निवासियों को मारा और खुद ऐसा रहने लगे कि अब वही अमेरिकन कहलाते हैं. दूसरे हिस्से में स्पेन ने ऐसा ही किया. तीसरे हिस्से में फ़्रान्स ने ऐसा ही किया.
लेकिन मौक़ा मिलते ही अमेरिका ने अपनी गुलामी के सारे चिह्न मिटा दिए. इंग्लैंड की महारानी का अमेरिका में जितना मज़ाक़ बनता है उतना भारत में राहुल गांधी का नहीं बनता. कोई भी सिस्टम जो इंग्लैंड से आया हो उसे तुरंत बदल अमेरिकन कर दिया जाता है. बिजली के वोल्ट से लेकर सड़क पर चलने तक में अमेरिका का अपना अलग सिस्टम है. क्रिकेट से लेकर फूटबाल तक में अमेरिका इंग्लैंड से विपरीत है. यहाँ तक कि जिन मूल निवासियों को उन्होंने मार दिया था आज की तारीख़ में उन्हें विशेष सुविधाएँ दी जाती हैं. आज़ाद देश है, ग़ुलामी का कोई चिह्न नहीं मिलना चाहिए. एक एक चिह्न मिटा दिया एंग्लैंड, स्पेन, फ़्रान्स की ग़ुलामी का – और यह चिह्न उन्ही के बच्चों ने मिटाया क्योंकि ज़ाहिर सी बात है देश सर्वोपरि होता है.
दुनिया का हर देश यही करता है, मौक़ा मिलते ही ग़ुलामी के चिह्न मिटाता है और अपने इतिहास को जीवित रखता है.
भारत दुनिया के उन गिने चुने देशों में होगा जहां हम ग़ुलामी के चिहों को गर्व के साथ रखते हैं. उन्हें ज्ञानवापी मस्जिद, शाही ईद गाह मस्जिद, टीले वाली मस्जिद, क़ुतुब मीनार के रूप में रख दुनिया को इसे अपनी गंगा जमुनी सभ्यता के रूप में बेशर्मी से दिखाते हैं. और दुर्भाग्य यह भी है कि ऐसा करने वालों में एक ठीक ठाक प्रतिशत उन हिंदुवों का भी है जिनके पूर्वजों ने मुग़ल आक्रांताओं से लड़ाई लड़ अपने धर्म को जीवित रखा, वह कन्वर्ट नहीं हुवे. पर उनकी नश्ले आज आज़ाद होने के बाद भी मानसिक रूप से ग़ुलाम हो चुकी हैं.
शेष यह कि हर आज़ाद हिंदुस्तानी की यह डिमांड होनी चाहिए कि आज़ाद देश से ग़ुलामी के इतिहास का एक एक निशान मिटाना चाहिए. यही हर सच्चे देश वासी का धर्म है.

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