Home राजनीति अयोध्या मामले में इतने वर्ष क्यों लग गए बात समझ आती है

अयोध्या मामले में इतने वर्ष क्यों लग गए बात समझ आती है

“तारीख नहीं बताएंगे” कहकर चिढ़ाना आसान था, लेकिन सच्चाई यह भी होती है यह बिना सबूतों के कहना मुश्किल।
दीर्घद्वेषियों से पाला पड़ता है तो जान हथेलीपर रखनी पड़ती है। कहना आसान है, निभाना मुश्किल। जनरल अरुण कुमार वैद्य को सेवानिवृत्त होने के बाद खोजकर क्रूरता से मारा गया था। ले. ज . ब्रार पर इतने सालों बाद भी हमले होते रहे हैं, वे भी अमेरिका में। वैसे एच के अल भगह और सज्जन कुमार को कुछ नहीं किया और काँग्रेस को सत्ता में भी लाया वो बात अलग है।
इन दो मामलों में भले ही सिक्खों का संबंध हो, भाय लोंगा कम नहीं, ज्यादा ही हैं। कोर्ट में क्रिमिनल लॉ के केसेस लड़नेवाले किसी भी वकील से दोस्ती है तो पूछ लीजिए कि साधारण चोरी चकारी के मामलों में भी कोर्ट के कमरों में टोपियाँ खचाखच भर जाती हैं और जज साहब या साहिबा को बारी बारी से घूरा जाता है। कहता कोई कुछ नहीं, शब्दों में कोई बेअदबी नहीं होती और चूंकि कोर्ट में कैमरा नहीं हो सकता तो इस बात की कोई रिकॉर्डिंग भी नहीं होती।
आम लोगों को कोर्ट से वास्ता नहीं पड़ता तो ये बातें समझ नहीं आती और वो भी “तारीख नहीं बताएंगे” में अपना सुर मिलाते है। रही सच्चाई, तो कोई सार्वजनिक बयान देने से रहा।
महत्वाकांक्षी व्यक्ति सहसा ध्येय और आदर्शों के लिए बलिदान होना नहीं चाहता। सेना की बात अलग है, वहाँ तो जॉइन करते ही आप की जिंदगी आप की नहीं रहती, यह जानकर ही जॉइन किया जाता है। लेकिन बाकी सभी नौकरियों में जब व्यक्ति रिटायर होते होते सर्वोच्च पद पर पहुंचता है या अपने करियर की सर्वोच्च उपलब्धि हासिल कर लेता है तो वो उसे रिटायर होने के बाद भोगना चाहता है, मारा जाना नहीं चाहता। और अगर संतानों की जिंदगी भी खतरे में आ जाए तो फिर कहना ही क्या ?
और सब से बड़ी बात यह है कि किसी से यह कहा भी नहीं जा सकत। फिर क्या होता है ? बॉस की डाँट खाया कर्मचारी जैसे घरवालों पर गुस्सा उतारता है वही समझिए। हिन्दू है किसलिए ? सब से टॉलरेंट तो वे ही हैं।
बाकी क्या कहना, सब कुछ तो कहा नहीं जा सकता, आप की समझदारी पर छोड़ रहा हूँ।

 

 

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