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अरब देश बनाम भारत

Vivek Umrao

by Umrao Vivek Samajik Yayavar
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पहली बात यह कि भारत खाद्यान से दुनिया का पेट नहीं भरता है, पहले अपने ही लोगों को पौष्टिक व स्वस्थ भोजन उपलब्ध करा ले, यही सबसे बड़ी उपलब्धि होगी। दूसरी बात रूस व यूक्रेन से सस्ता अनाज दुनिया को मिलता था, इसलिए देश इन दो देशों से खरीदारी करते थे। वैसे ही जैसे रूस योरप को तेल व गैस सस्ते में उपलब्ध कराता था, बाद में निर्भरता बढ़ने पर ब्लैकमेल शुरू कर दिया था (युद्ध होता या न होता, रूस पर निर्भरता तो वैसे ही कम की जा रही थी, अंतर केवल यह है कि युद्ध ने निर्भरता कम करने की गति को बहुत बढ़ा दिया)।

 

चूंकि युद्धों के कारण परिस्थितियों में अचानक भारी परिवर्तन आते हैं, इसलिए शुरुआत में संभालना बहुत-बहुत मुश्किल पड़ जाता है। ऐसा ही अनाज के संदर्भ में है, ऐसा नहीं है कि दुनिया को रूस व यूक्रेन का अनाज नहीं मिलेगा तो दुनिया भूखे मर जाएगी। दुनिया के देश दूसरे उत्पादक देशों का विकल्प चुनेंगे, भले ही रूस व यूक्रेन की तुलना में कुछ महंगा विकल्प हो।

 

यूरोप रूस की बजाय अरब देशों से तेल लेगा। अरब देशों की पूरी इकोनोमी ही तेल पर है, वे क्यों नहीं बेचेंगे, अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए रणनीतिक तौर पर कुछ नौटंकी भले ही दिखाएं लेकिन बेचेंगे तो है ही। योरप से अधिक बड़ा व मजबूत खरीदार कोई और है भी नहीं।

 

अरब देशों की अतिरिक्त आय बहुत अधिक होगी, तो वे भारत से सस्ता अनाज खरीदने की बजाय कहीं और से कुछ महंगा भी खरीदेंगे तब भी कुल मिलाकर वे बहुत अधिक लाभ में ही रहेंगे। चूंकि भारत पर मुगलों ने सैकड़ों साल राज किया है, ऊपर से नीचे तक मुगल संस्कृति घुल-मिल गई है, साझा संस्कृति है, इसलिए अरब देशों की भारत पर निर्भरता भारत के उत्पादन व गुणवत्ता की बजाय सांस्कृतिक संबंधों के आधार पर है। अरब देश भारत से की जाने वाली आपूर्ति को कही और से भी पूरा कर सकते हैं, सक्षम हैं आर्थिक रूप से बेहद मजबूत हैं।
लेकिन भारत जो अपना 85% से अधिक तेल व 50% से अधिक नेचुरल-गैस का आयात करता है। अभी जबकि भारत में नेचुरल-गैस का प्रयोग बहुत ही कम होता है, तब भी 50% आयात करना पड़ता है। शहरों में घरों में गैस आपूर्ति के प्रोजेक्ट बन रहे हैं, समय के साथ ज्यों-ज्यों नेचुरल-गैस की खपत बढ़ेगी, त्यों-त्यो नेचुरल-गैस का आयात भी बढ़ेगा। पेट्रोलियम के सीधे आयात के अतिरिक्त भारत में ऐसी कई बड़ी-बड़ी कंपनियां हैं जिनके अरबों खरबों बिजनेस का आधार ही कच्चा तेल है। आयात निर्यात दोनों की चूलें हिल जाएंगी।
सस्ता कच्चा तेल लेकर संशोधित करके कई-कई गुना दामों व अनापशनाप करों को जोड़कर भारत की सरकारें व तेल कंपनियां जो भारत के एक अरब लोगों को भरपूर लूटती हैं और बढ़ी हुई GDP दिखाई जाती है। इन सब प्रोपागंडा का क्या होगा। GDP के आकड़े एक झटके में धड़ाम होंगे। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर छोड़िए, घरेलू मुद्रा अवमूल्यन जबरदस्त तरीके से होगा। पूरी इकोनोमी हिल जाएगी।
भारत सरकार इस बात को अच्छी तरह से समझती है। इसीलिए जब भी अरब देश गंभीरता से कोई विरोध करते हैं तो भारत सरकार को पीछे हटना पड़ता है। घरेलू व प्राजोजित मीडिया में चाहे जो भी प्रोपागंडा फैलाया जाए। लेकिन दुनिया का बेहद कड़वा यथार्थ यही है कि जो देश गैस व पेट्रोलियम पर आत्मनिर्भर नहीं हैं, वे अरब देशों से एक सीमा से अधिक पंगा नहीं ले सकते हैं।
बिना पेट्रोलियम के भारी उद्योग, कृषि उद्योग इत्यादि ठप्प पड़ जाएंगे। लड़ाकू विमान, उपग्रह, मिसाइल, तोप, टैंक, युद्धपोत इत्यादि कूड़े के ढेर के सिवाय कुछ नहीं बिना पेट्रोलियम के। इसलिए खांमखा के हवाई गुब्बारे न छोड़िए। सरकार को अपना काम करने दीजिए। आप अपनी नफरत लंपटई वाली राष्ट्र-भक्ति देश के अंदर रखिए, अंतर्राष्ट्रीय मामलों में नाक न घुसेड़िए।
भारत सरकार को अपना काम करने दीजिए, मामला हैंडल करने दीजिए। बकिया भारतीय मीडिया तो बताता ही रहेगा कि अरब देशों ने नाक रगड़ कर माफी मांग ली, इसी से खुश रहिए, और क्या चाहिए, खुश ही तो रहना है।

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