पहली बात यह कि भारत खाद्यान से दुनिया का पेट नहीं भरता है, पहले अपने ही लोगों को पौष्टिक व स्वस्थ भोजन उपलब्ध करा ले, यही सबसे बड़ी उपलब्धि होगी। दूसरी बात रूस व यूक्रेन से सस्ता अनाज दुनिया को मिलता था, इसलिए देश इन दो देशों से खरीदारी करते थे। वैसे ही जैसे रूस योरप को तेल व गैस सस्ते में उपलब्ध कराता था, बाद में निर्भरता बढ़ने पर ब्लैकमेल शुरू कर दिया था (युद्ध होता या न होता, रूस पर निर्भरता तो वैसे ही कम की जा रही थी, अंतर केवल यह है कि युद्ध ने निर्भरता कम करने की गति को बहुत बढ़ा दिया)।
चूंकि युद्धों के कारण परिस्थितियों में अचानक भारी परिवर्तन आते हैं, इसलिए शुरुआत में संभालना बहुत-बहुत मुश्किल पड़ जाता है। ऐसा ही अनाज के संदर्भ में है, ऐसा नहीं है कि दुनिया को रूस व यूक्रेन का अनाज नहीं मिलेगा तो दुनिया भूखे मर जाएगी। दुनिया के देश दूसरे उत्पादक देशों का विकल्प चुनेंगे, भले ही रूस व यूक्रेन की तुलना में कुछ महंगा विकल्प हो।
यूरोप रूस की बजाय अरब देशों से तेल लेगा। अरब देशों की पूरी इकोनोमी ही तेल पर है, वे क्यों नहीं बेचेंगे, अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए रणनीतिक तौर पर कुछ नौटंकी भले ही दिखाएं लेकिन बेचेंगे तो है ही। योरप से अधिक बड़ा व मजबूत खरीदार कोई और है भी नहीं।