Home राजनीति अशोक के ‘धर्म स्तंभ’ से ‘धर्म’ को क्यों अलग करना चाह रहे लिबरल

अशोक के ‘धर्म स्तंभ’ से ‘धर्म’ को क्यों अलग करना चाह रहे लिबरल

by Sharad Kumar
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जिस देश में लाखों मुस्लिम जुमे के दिन सड़क जाम कर के और सार्वजनिक स्थलों पर नमाज पढ़ते हों और जिस व्यक्ति ने उस पर चूँ तक न किया हो, वो भारतीय संस्कृति व रीति-रिवाज के हिसाब से हुए अनावरण का विरोध कर रहा है।

 

देश के वर्त्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में बन रहे नए संसद भवन की छत पर बने राष्ट्रीय प्रतीक अशोक के स्तम्भ का कल अनावरण किया अशोक के इस स्तम्भ का वजन लगभग 9500 किलोग्राम है और जिसकी उचाई लगभग 6.5 मीटर है मोदी ने कहा की नए अशोक स्तम्भ को नए संसद भवन की छत पर स्थापित किया गया है जिसको सहारा देने के लिए 6500 किलोग्राम का इस्पात इसके आसपास लगाया गया है यह स्तम्भ भविष्य में मील का पत्थर साबित होगा वही दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब विधिवत पूजा-अर्चना कर के इसका अनावरण किया तो लिबरलों को मिर्ची लग गई। हाँ, पूजा की जगह अगर नमाज पढ़ी गई होती तो शायद ये अभी ख़ुशी से झूम रहे होते।

 

सबसे पहले आपको अपने राजकीय प्रतीक के बारे में बता देते हैं। आप इससे अनजान नहीं है, क्योंकि आपने एक-दूसरे की ओर पीठ किए चार सिंहों वाले इस प्रतीक को कई बार देखा है। इसके नीचे घंटे के आकार के पदम के ऊपर एक चित्र वल्लरी में हाथी, चौकड़ी भरता हुआ एक घोड़ा, एक साँड और सिंह की उभरी हुई मूर्तियाँ होती हैं, जिसके बीच-बीच में चक्र बने हुए हैं। एक ही पत्थर से तराश कर इसे बनाया गया था और इसके ऊपर ‘धर्मचक्र’ रखा होता है।

26 जनवरी, 1950 को हमारे संविधान निर्माताओं ने इसे हमारे राजकीय प्रतीक के रूप में मान्यता दी। इसके नीचे देवनागरी लिपि में ‘सत्यमेव जयते’ भी लिखा होता है, जिसका अर्थ है – सत्य की ही जीत होती है। 268 ईसापूर्व से लेकर 232 ईसापूर्व तक अखंड भारत पर 36 वर्ष शासन करने वाले महान सम्राट अशोक को भला कौन नहीं जानता। हालाँकि, मुगलों और फर्ज शाह तुगलक ने इन स्तंभों के साथ बड़ी छेड़छाड़ की और इन्हें इधर-उधर कर दिया।

खुद सम्राट अशोक ने इन स्तंभों को ‘धम्म (धर्म) स्तंभ’ नाम दिया था, ऐसे में क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पूजा-अर्चना कर के धर्म के अनुसार इसका अनावरण करने से लिबरल गिरोह को क्यों परेशानी हो रही है? सोचिए, 2272 वर्ष पुराने अपने इतिहास को भारत जागृत कर रहा है और सहेज रहा है तो इससे भी कई लोगों को दिक्कत है। यहीं से भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे का चक्र भी लिया गया है। सारनाथ में जब सम्राट अशोक गए थे, तब उनके स्वागत के लिए इसे बनाया गया था।

 

उन्होंने पीएम मोदी पर सभी संवैधानिक मान्यताओं की धज्जियाँ उड़ाने के आरोप मढ़ दिए। इस पर रिप्लाई देते हुए प्रोपेगंडा पोर्टल ‘द वायर’ के फ़ाउंडिंग एडिटर सिद्धार्थ वरदराजन ने जोड़ा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने घर में प्रार्थना करनी चाहिए और अगर वो खुले में प्रार्थना करना चाहते हैं तो ये भारतीय संघ का कोई आधिकारिक कार्यक्रम नहीं होना चाहिए। उन्होंने उन्हें ‘बार-बार ऐसा अपराध करने वाला’ बता दिया और कहा कि ये स्पष्ट रूप से गलत है।

 

गजब की मिर्ची लगी है! जिस देश में लाखों मुस्लिम जुमे के दिन सड़क जाम कर के और सार्वजनिक स्थलों पर नमाज पढ़ते हों और जिस व्यक्ति ने उस पर चूँ तक न किया हो, वो भारतीय संस्कृति व रीति-रिवाज के हिसाब से हुए अनावरण का विरोध कर रहा है। घंटों ट्रैफिक जाम जब लगता है नमाज के कारण और लोगों को परेशानी होती है, तब तो ये चूँ नहीं करते? क्या सिद्धार्थ वरदराजन ने आज तक कहा कभी कि मस्जिदों को माइक से दिन में 5 बार अजान नहीं करनी चाहिए, अंदर ही चुपचाप करनी चाहिए?

ये देव-पुराणों और उपनिषदों की धरती है। रामायण-महाभारत की धरती है। ऐसे में इन प्राचीन ग्रंथों के हिसाब से यहाँ कार्य नहीं होगा तो भला कहाँ होगा? वेदों के देश में वैदिक नहीं तो क्या अरब के रीति-रिवाज चलेंगे? सनातन की धरती पर क्या शरिया के हिसाब से चीजें होंगी? सिद्धार्थ वरदराजन अमेरिकी नागरिक हैं, ऐसे में उन्हें पता होगा कि USA के राष्ट्रपति भी बाइबिल पर हाथ रख कर शपथ लेते हैं। अमेरिका एक ईसाई बहुल देश है, वहाँ तो क्रिश्चियनिटी का जन्म भी नहीं हुआ था। जबकि सनातन भारत में ही प्रकट हुआ और यही फला-फूला।

क्या इस लिबरल गिरोह को पता भी है कि इस अशोक स्तंभ को स्थापित करने में कितनी मेहनत लगी है? जिन कर्मचारियों और कामगारों की बदौलत ये संभव हुआ, अनावरण कार्यक्रम में उन्हें भी आमंत्रित किया गया था और पीएम मोदी ने उनसे बातचीत भी की। 8 चरणों में इसका कार्य पूरा हुआ है, जिसमें मिट्टी का मॉडल बनाने से लेकर कम्प्यूटर ग्राफिक्स तैयार करना और कांस्य की इस आकृति को पॉलिश करना शामिल है। इसे सहारा देने के लिए 6500 किलोग्राम की स्टील की संरचना इसके आसपास बनाई गई है।

भला वामपंथी दलों को पूजा-पाठ से दिक्कत न हो, ऐसा कैसे हो सकता है? CPI(M) ने तुरंत बयान जारी कर दिया कि ‘धार्मिक कार्यक्रमों’ को राजकीय प्रतीक के अनावरण से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। पार्टी ने दावा किया कि ये सबका प्रतीक है, न कि किसी खास धार्मिक विचार को मानने वालों का। साथ ही राष्ट्रीय समारोहों से ‘धर्म’ को अलग रखने की बात की। कितना अजीब है न? इसे स्थापित करवाने वाले सम्राट अशोक ने भले ही इसे ‘धर्म स्तंभ’ कहा हो, आज वामपंथी इसमें से ‘धर्म’ हटाने की वकालत कर रहे हैं।

 

वहीं ‘कामगार एवं कर्मचारी कॉन्ग्रेस’ के अध्यख डॉ उदित राज भी पूरी तरह भड़क गए और पूछ दिया कि क्या राजकीय प्रतीक भाजपा का है? उन्होंने कहा कि हिन्दू रीति-रिवाज से सब कुछ हुआ, जबकि भारत एक ‘सेक्युलर’ राष्ट्र है। उन्होंने पूछा कि अन्य राजनीतिक दलों को क्यों नहीं आमंत्रित किया गया? जो अभी से ही भारतीय संस्कृति का अपमान कर रहे हैं और राजकीय प्रतीक को भला-बुरा कह रहे हैं, उन्हें भला इस कार्यक्रम में क्यों बुलाया जाए?

 

AAP नेता संजय सिंह से लेकर समाजवादी पार्टी के IP सिंह तक, सबने राजकीय प्रतीक का अपमान किया। क्या इन नेताओं ने कभी राष्ट्रपति भवन में इफ्तार पार्टियों पर आवाज़ उठाई? टोपी पहन-पहन कर इफ्तार पार्टियाँ करने वाले ये नेता आज कह रहे हैं कि पीएम मोदी पूजा न करें। डॉ एपीजे अब्दुल कलाम और रामनाथ कोविंद ने राष्ट्रपति रहते परिसर में होने वाली इन इफ्तार पार्टियों पर ब्रेक लगाया। करदाताओ के पैसे से इफ्तार हो सकता है, लेकिन भारत में भारतीय संस्कृति नहीं चलेगी, लिबरल गिरोह का यही मानना है।

 

वैसे भारतीय संस्कृति के विरोध में खुद को दलितों का चिंतक बताने वाले सामने न आएँ तो विरोध अधूरा है। प्रोफेसर दिलीप मंडल ने ब्राह्मणों को भला-बुरा कहते हुए इसे ‘पाखंड’ बता दिया। तो फिर क्या सम्राट अशोक द्वारा हजारों स्तूपों और विहारों का निर्माण करवाना भी ‘पाखंड’ था? बौद्ध धर्म की झूठी कसम खाने वाले इन फर्जी दलित चिंतक ने डर जताया कि बौद्ध धर्म को हड़पा जा रहा है। विश्व के सबसे लोकप्रिय बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा पीएम मोदी की प्रशंसा करते हैं, फर्जी दलित चिंतक विरोध।

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