भारत के तथाकथित अल्पसंख्यक इतने आराम से अपनी मर्जी,लंठई, विध्वंस,धौंस इसलिए चला ले रहे हैं क्योंकि इस देश में असल अल्पसंख्यक सनातनी हैं।
जिस देश में हिंदुनामधारियों में 65-70% सेकुलड़ (अचेत,आत्महीन,भय या लोभ की स्थिति में झट से नाम गोत्र त्यागने को प्रस्तुत) हों, पूरी न्यायिक, बौद्धिक व्यवस्था सेकुलड़ी(तुष्टिकर्ता) हो,,,उस देश में क्यों न लाठी और भैंस दोनों ही गौभक्षकों के हाथ हो।
मज्जबी शासक कई सौ वर्षों में जो नहीं कर पाए,उनके वारिसों(काँगी वामी) ने मात्र कुछ दशक में वह(कन्वर्जन) कर दिया।
वास्तविक अल्पसंख्यक कम से कम अब तो आत्मचिंतन कर लें कि अब जब उन्हें इस धरती को छोड़ देने का आदेश चुका है,उनके अस्तित्व को मिटाने का खुलेआम ऐलान हो चुका है तो उन्हें जाना कहाँ है यह आदेश निर्देश भी उन्हीं से लेना है या इस धर्मयुद्ध को धर्म धारण कर धर्मबल से जीतना है?ज्ञात रहे कि उनका भय विरोध आक्रोश सब सनातनी धर्म संस्कृति और मूल्यों से है।
हम इसके विस्तार द्वारा ही उनकी प्रवृत्ति और अहंकार को ध्वस्त कर सकते हैं।सनातनी माताएँ कौशल्या देवकी बनकर ही राम कृष्ण जैसे सन्तान उतपन्न कर सकती हैं जो अधर्म के अन्धकार को समेटकर धर्म का प्रकाश धरती पर पहुँचा सकते हैं।
सो धर्म धारण करें।हम धर्म की रक्षा करें,धर्म हमारी रक्षा करेगा।