श्रीलंका के कोलैप्स हो जाने पर भारत के जोकर बुद्धिजीवियों के 2 वर्ग देखे गए पहला जो “हमारे वाले कब झोला लेकर निकल रहे” और दूसरे वो जो भारत के भी ढह जाने का भय दिखा रहे थे।
अंग्रेजों में पूरी दुनिया को डिसिप्लिन सिखाने का अहंकार है वो खुद को अनुशासित और दूसरों को जाहिल समझते आए , कुछ साल पहले लंदन का सीसीटीवी का सेंट्रल सर्वर कुछ घण्टों के लिए ठप्प हुआ था उस दौरान इस अनुशासित श्रेष्ठ नस्ली चमड़ी ने पूरे लंदन में लूटमार मचा दी थी, क्योंकि उनकी कानून व्यवस्था कैमरों पर ही टिकी थी और हम 70 साल पिछड़े रहकर भी अराजक नहीं हुए।
तो नंगा नाच करने वाले दोनों तरह लोगों को समझना चाहिए कि हमें लोकतंत्र एकदम नौसिखिया हाथों में थमाया गया था जब 62 में हम कोलैप्स नहीं हुए, खाने को गेंहू नहीं था तब नहीं हुए, इमरजेंसी में नहीं हुए, जब केजीबी के लोग सरकार में ऊपर तक घुस गए थे तब नहीं हुए, गुजराल और देवगौड़ा जैसी सरकारों में नहीं हुए , अनगिनत नरसंहारों और दंगों में नहीं हुए तो अब तो हम दुनिया के लिए दुनिया का सबसे तेजी से बढ़ता बाजार हैं।
श्रीलंका और दूसरे देशों के मुकाबले हममें फर्क ये भी है कि हम 70 साल से नहीं बल्कि हजारों साल से ऐसा फेडरल स्ट्रक्चर हैं जो हर 5-7 किलोमीटर के गांवों में बसता है…और इन गांवों के दम से ही हमने आधी दुनिया का पेट भरने का कमिटमेंट उठाया हुआ है, बिना किसी सौदेबाजी और ब्लैकमेलिंग के वैक्सीन दुनिया को देने वाला भारत है…. भाषाई, खानपान, पहनावे, रीतियों में जमीन आसमान के अंतर के बावजूद उत्तर से दक्षिण तक भारत हजारों साल से एक है और इसकी प्रमुख और एकमात्र वजह है एक आस्था… वामदल्ले कुछ भी कहें लेकिन भारत आस्था और धर्म की शक्ति से ही टिका है और रहेगा।
किसी पार्टी/नेता से इतनी नफरत कि देश के नाश का ही सपना आने लगे ये मुझे नहीं लगता और कहीं होता होगा… भारत ऋषियों और अवतारों की भूमि है इसलिए भारत श्रीलंका नहीं बनेगा, जरूरत है अपनी जड़ों से जुड़े रहने की उन्हें मजबूत रखने की , भारत तब तक श्रीलंका नहीं बनेगा जब तक गांव हैं, जब तक धर्माचरण है जब तक परंपराएं हैं जबतक सनातन धर्म है।