सोशल मीडिया पर आशरीन-नागराजू पर कोई चर्चा कहीं नजर नहीं आ रही। क्यों? क्योंकि यह घटना दक्षिण में घटी? दलित-मुस्लिम गठजोड़ के कशीदे भारत की राजनीति में बहुत गढ़े जाते हैं। पिछले दिनों तो बाबा साहेब के एक पोते भी इस आग में घी डालने लगे थे।
वही बाबा साहेब जिन्होंने जोगेंद्र मंडल को सचेत किया था। हालाँकि जोगेंद्र मंडल माने नहीं और नतीजा यह हुआ कि दस लाख से अधिक दलितों को जान से हाथ धोना पड़ा। वही बाबा साहेब जिन्होंने अल्पसंख्यक संबंधी कुछ प्रावधान से पहले पूरी संसद को सचेत किया। लेकिन नेहरू माने नहीं और नतीजा आज सबके सामने है।
अगर किसी अल्पसंख्यक या दलित को कोई अपराध करते हुए आम जनता पकड़ भर ले तो उसे आम जनता का जघन्य अपराध घोषित कर देने वाले मीडिया के नाम पर देश के दुश्मनों की दलाली करने वाले भी इस प्रकरण पर पूरी तरह चुप हैं।
अपने को खुद ही समुदाय या जाति का शेर बताने वालों को तो चुप रहना ही है। पढ़ना लिखना उन्हें आता कहाँ है कि बेचारों को सूचना हो। वो तो केवल फॉरवर्ड और कॉपी पेस्ट करने को ही महान वीरता मानते हैं।
हैदराबाद में बीच चौराहे पर दिन दहाड़े नागराजू को तब मार डाला गया जबकि वह मुसलमान बनने को तैयार था। लेकिन उसका मुसलमान बनना भी वे कैसे बर्दाश्त कर सकते थे! आशरीन सैयद परिवार से जो थी!