Home आर ऐ -ऍम यादव ( राज्याध्यक्ष) इनकी सामाजिक मानसिकता को भी समझिए।
1992 के अजमेर स्कैंडल को ही मुख्य उदाहरण के तौर पर लेते हैं। आरोपियों में से एक, सुहैल चिश्ती, फरार चल रहा था, 2018 में ही कानून के हाथ में आया । मामला चल रहा है लेकिन जिस तरह से अब पीडिताएँ ही गवाही से कतरा रही हैं, पता नहीं उसे सजा होगी भी या नहीं।
पीडिताओं के साथ क्या क्या हुआ उसमें मैं दुबारा जाना नहीं चाहता। बात करनी है आरोपियों की और उनके साथ उनके समाज का रुख। कोई भी यह केस पढ़ेगा तो यही पाएगा कि उनके परिवारने उनको बचाने का भरसक प्रयास किया। सुहैल चिश्ती अगर 2018 तक फरार था, इतने साल कहाँ था , क्या किया, किसकी सहायता से छुपता रहा इसपर कोई खबर उपलब्ध नहीं, लेकिन यह कहा जा सकता है कि बिना सामाजिक सहयोग के यह संभव नहीं।
वैसे भी आठ से दस साल तक किसी को पकडा नहीं गया। एक हिन्दू भी आरोपी था, नाम पुरुषोत्तम था। उसने 1994 में ही जमानत पर निकलते ही आत्महत्या कर ली। बाकी किसी विधर्मी ने ऐसा कुछ नहीं किया।
यह जानकारी मेरे पास नहीं है कि इन आरोपियों की तब तक शादियाँ वगैरह हुई या नहीं। जिस तरह से उन्हें बचाया जा रहा था, हो सकता है किसी की शादी और बच्चे होने में कोई दिक्कत आई नहीं होगी। यह काफी इन्टरेस्टिंग होगा अगर उनके समाज में इस कृत्य को गुनाह माना भी गया या नहीं क्योंकि साभी पीडिताओं में कोई उनके रिलीजन की नहीं थी।
यहाँ एक बात बताना चाहूँगा। आप ने भी कई विडिओ देखे होंगे जहां कोई दढ़ियल, किसी बालिका या किसी महिला से गलत वर्तन के लिए अन्य महिलाओं तथा पुरुषों से बहुत निर्दयता से पीटा जाता है। यह सब उनके ही समाज का मामला होता है, पीड़िता भी उनके ही समाज की होती है। वहाँ उस पुरुष के साथ कोई रियायत नहीं होती, बिलकुल निष्ठुरता से उसका न्याय होता है, होना भी चाहिए।
लेकिन जब पीड़िता हिन्दू हो तो यह इंसाफ कहाँ मुँह काला कर लेता है यह ‘वो’ ही जानता होगा। महिलाओं को भी एक महिला के प्रति, महिला होने की जो सहानुभूति की अपेक्षा की जाती है, वो नहीं दिखती।
हो सकता है जहां एक काफिर महिला की इज्जत का सवाल हो, उनका दीन उन्हें इंसाफ करने की इजाजत नहीं देता क्योंकि वो काफिर जो ठहरी। वैसे एक बात आप को बता दूँ, एक्स मुस्लिम सचवाला जी के चैनल पर एक लंबी बहस चली थी जहां उन्होंने स्पष्ट किया कि दीन में बलात्कार की कोई कान्सेप्ट ही नहीं है। अवैध संभोग को ज़िना कहा जाता है, और वो दोनों की मर्जी से भी हो सकता है, लेकिन अगर विवाहबाह्य हो तो पत्थर मारकर मृत्युदंड दिया जा सकता है। लेकिन बलात्कार की कोई अलग व्याख्या नहीं, उसकी अलग सजा नहीं। स्त्री को भी मृत्युदंड मिलेगा क्योंकि वो संभोग अवैध हुआ था। बलात्कार को चार वयस्क दीनबंधु गवाह चाहिए।
अब वे गवाही देंगे या मौके का खुद भी फायदा उठायेंगे, सोच लीजिए।
मूल मुद्दे पर लौटते है, बलात्कारी अगर उनका दीनबंधु है और पीड़िता काफिर है तो उनके समाज का रवैया क्या है। लव जिहाद में फँसाई गई कई लड़कियां फिर दिखाई नहीं देती, क्या उनकी महिलायें नहीं जानती उनके साथ क्या होता है ? कितनों को उनकी दीनी सहेलियाँ खुद फँसाती हैं ?
अपवाद नहीं ऐसी बात नहीं, खुद भी ऐसों को जानता हूँ, उनके लिए मुझे सम्मान भी है, लेकिन उनके समाज में उनको इज्जत से नहीं देखा जाता।
अजमेर कांड में लगभग एक दशक तक वहाँ की लड़कियों के लिए विवाह होना मुश्किल था, कांड से कोई संबंध न होने पर भी । कई पीडिताओं ने आत्महत्या भी कर दी, सच्चाई सामने नहीं आएगी।
और ये नराधम आराम से घूमते रहे, समाज में तिरस्कृत नहीं रहे। यह जानना इन्टरेस्टिंग होगा कि उनकी शादिया, बच्चे हुए या नहीं। या अगर शादियाँ हुई हो तो बाकी जिंदगी कैसे गुजरी, आगे भी उन बीवियों से बच्चे हुए या नहीं। यह उनकी जाती जिंदगी में ताकझाँक नहीं, बल्कि उनके समाज में इस बात की स्वीकार्यता को समझने का प्रयास है अगर इनकी शिकार लड़कियां काफिरों से थी।
DNA भले ही एक हो, नैतिकता विपरीत हो तो कैसे चले

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