एक मित्र ने यह मजेदार घटना सुनाई, इसे इसके सीमित संदर्भ में लें…यह अर्थ ना निकालें कि इस्लाम में रिफार्म नज़र आ रहा है.
एक खान साहब हैं. सुबह सुबह ग्राउंड में टहलने और फिट रहने आते हैं. मोहल्ला भाजपाइयों का है तो ग्राउंड आने वाले बाकी सारे बजरंगी ही हैं. खान साहब बिल्कुल वैसे ही हैं जैसी खान साहब से उम्मीद है..संघ, भाजपा और मोदी से घृणा…जो मूलतः हिंदुओं से घृणा का दबा ढँका एक्सप्रेशन है. पर खान साहब को दारू पीने का शौक है इसलिए उनको काफिरों की सोहबत ही पसंद आती है…क्योंकि मोमिनों को उनकी सोहबत नहीं पसंद आती. खान साहब की पूरी सोशल सर्किल हिंदुओं की ही है, वक्त मुश्किल पर हिन्दू ही उनके फ़ास्ट डायल पर हैं.
एक दिन उन्होंने एक मित्र को SOS कॉल दिया… एक लफड़ा हो गया है, जरा थाने पर आइये ना…तो उनके चार पाँच खैरख्वाह फटाफट थाने पहुँचे. पहुँच कर देखा कि लफड़ा और किसी से नहीं, अपनी ही बेगम से हो रखा है. बेगम थीं तो सीधी सादी, हिज़ाब बुर्के वाली, पर उस रोज मामला कुछ बढ़ गया तो चण्डी हो गई थीं. थाने पहुँच गईं रिपोर्ट कराने … मारता पीटता है, बदतमीजी करता है, बात बात में मुझे ज़ाहिल-जपाट बोलता है. बर्दाश्त से बाहर हो गया है.