आमजन रक्षाबंधन को लेकर बहुत असमंजस में है। भसड़ मची पड़ी और बहुतै कंफ्रूज है आमजन। आओ पंडितों को लानतें भेजें।
आओ लानत मलामत करें पुरोहितान की ज्योतिषान की। इस लानत मलामत में वह पंडित ज्योतिषी भी आगे जो शास्त्र धर्म और इष्ट छोड़कर आमजन के आगे नतमस्तक रहते कि एकाध फ्लैट प्लॉट खरीद लें इसी जनम में। मोटर चढ़ लें निजी।
आमजन इसलिए ऊहापोह में है कि-
1) प्रथम तो वह दिन रात तारीख कैलेण्डर अंग्रेजी में सोचता है। चंद्रमा की गतियों से वह अपरिचित हो चला है।
2) यह समझना हम भूल गये कि यह देश नहीं महादेश है। यहां सैकड़ों मत मतांतर हैं रहा है और रहेगा। यहां सबका मालिक एक जैसा एकेश्वरी अब्राहमिक वाद न चला है न चलेगा।
3) मुहूर्त और ज्योतिष संबंधी निर्णयों के लिए अपने स्थानीय पारिवारिक ज्योतिषी पुरोहित से सलाह लें न कि टीवी, अखबारिया या फेसबुकिया पंडित से।
4) यहां न एक क्लाइमेट है न एक मौसम न एक कैलेण्डर। उदाहरणार्थ गुजरात में अभी श्रावण कृष्ण पक्ष प्रारम्भ होना बाकी।
5) पण्डितों पर सारा दोष मढ़ देना यह नया फैशन है। पंडित बता रहे हैं श्रावणी का मुहूर्त, उपाकर्म का मुहूर्त और रक्षाबंधन का मुहूर्त। और अधिकांश पंडित अपने स्थानीय दिन मान परम्परा के हिसाब से ठीक ही बता रहे हैं।
लेकिन अधिसंख्य जन को न तो ऋषि तर्पण करना है, न उपाकर्म, न श्रावणी। बहन से राखी भर बंधवाना है उसमें भी परेशानी।
6) और असल परेशानी तो इसलिए कि ग्यारह अगर रात को बंधवानी है तो बहन रूकेगी घर।
न बहन रूकना चाह रही न भाई भाभी चाह रहे कि बहन रूके (अधिकांश)
7) बारह की सुबह सात बजे तक बांधना है तो उसमें तो बहुत बाधा है भाई। भाई नौ बजे उठना है गुटखा सिगरेट डालेंगे मुंह में तो उपर से प्रैशर बनेगा तो नीचे से कछु निकड़ेगा। बहुत बाधा है।
8) बारह की सुबह सात बजे तक इसलिए भी बाधा है कि बहन जी मान लो सात बजे उठ भी गयीं तो मेकअप के लिए अट्ठावन मिनट उनसठ सेकंड चाहिए तब तक तो भाद्रपद आ लेगा।
9) उधर एक वो आत्मग्लानि में मरे जा रहे ज्योतिषी नक्षत्रसूची लोग हैं उनका कहना कि भाई बहन का प्रेम भरा त्यौहार लोकपर्व है इसमें मुहूर्त की आवश्यकता नहीं।
हे महारावणों कौन सा त्यौहार बिना लोक के ही संपन्न हो जाता है?
आयं बोल
10) एक वर्ग ऐसा भी है कि ग्यारह को झटपट पर्व निपटे। बारह को खटपट मुर्गी मार दो। लाहौल पिला क्वार्टर
11) एक आत्मप्रवंचक वर्ग ऐसा भी है कि किसी बहाने पंडे पुरोहितान को गरियाने का मौका मिले। इन पंडो नें इनके चाची बुआ की बकरी बिल्ली मारी हो जैसे।
जाओ मूर्खों अपने स्थानीय पारिवारिक कुलपुरोहित से पूछो।
जैसे फेमिली डॉक्टर होते हैं वैसे ही फेमिली ज्योतिषी बनाओ।
पूर्वजों की यही पद्धति रही।
डॉ मधुसूदन पाराशर
देवारण्य