Home हमारे लेखकनितिन त्रिपाठी एक पत्रकार महोदय हैं, बुजुर्ग हैं

एक पत्रकार महोदय हैं, बुजुर्ग हैं

by Nitin Tripathi
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एक पत्रकार महोदय हैं, बुजुर्ग हैं। उनका नाम लिख कर उन्हें खाम ख्वाह पोपुलर और जलील नहीं करना। कम से कम सोशल मीडिया पर उनसे ज्यादा पॉपुलरिटी मेरी है।

 

सपा सरकार मे ऐसे पत्रकारों की जबरदस्त खातिरदारी हुई। बड़े बड़े बुजुर्ग पत्रकार अखिलेश को देखते ही जमीन पर लेट कर साष्टांग प्रणाम करते थे। वजह यह थी कि अखिलेश खुश होंगे तो 2 bhk फ्लैट दे देंगे लखनऊ में। मुलायम ने भी यही किया था। सैंकड़ों पत्रकारों को लखनऊ हज़रत गंज मे फ्लैट दिए गए थे। अखिलेश ने तो यश भारती पुरुषकार का आधार यही बना दिया था, जाइए चमचा गिरी कीजिए, दंडवत प्रणाम करिए, आजीवन पचास हजार पेंशन उठाइए। महिला पत्रकार है तो कहने ही क्या।

 

इन दिनों अधिकतर ऐसे पत्रकार जिनकी आयु हो चुकी है, मुख्य भूमिका से बाहर हैं, रिटायरमेंट सर पर है, उनकी जिंदगी का इकमात्र उद्देश्य यह है कि जैसे संभव हो अखिलेश की गुड बुक मे आ जाएँ। उलटे सीधे आँकड़े दिए जाएंगे, तथ्यों को तोड़ा मरोड़ा जाएगा, ऐसी ऐसी समीक्षाएं दी जाएंगी कि यदि आप तनिक भी अनालीटिकल क्षमता रखते हैं आप तुरंत समझ जाएंगे यह चमचागिरी हो रही है। रवीश आदि फिर भी एक लेवल ऊपर वाले हैं वह आलोचना करते हैं, आलोचना सबसे आसान कार्य है, मैं तो रामराज मे दस कमियाँ निकाल सकता हूँ जिससे सब सहमत होंगे – यही रवीश करते हैं। पर यह उम्र दराज पत्रकार इससे भी एक लेवल नीचे प्योर चमचा गिरी वाली पोस्ट / कमेन्ट करते रहते हैं।

 

पत्रकार महोदय की पोस्ट पर यदि मैं कमेन्ट लिख देता हूँ तो उनकी पोस्ट से ज्यादा लाइक मुझे मिल जाते हैं 🙂 बुजुर्ग हैं, थोड़ा बहुत नाम है, पर मुझसे बहुत सशंकित रहते हैं। वजह यह है कि मालिक आकर पोस्ट पढ़ेंगे तो कमेन्ट भी पढ़ेंगे। आप सब जानते हैं मैं विस्तार से कमेन्ट लिखता हूँ, कटाक्ष नहीं फैक्ट्स लिखता हूँ, पर बुजुर्ग पत्रकार अंकिल की सुलगी रहती है मुझसे। जैसे ही मेरे कमेन्ट को थोड़े ज्यादा लाइक मिलते हैं तुरंत डिलेट कर देते हैं। एकाध बार कमेन्ट के जवाब मे ऊल जलूल भाषा का भी उन्होंने इशतेमाल किया, पर मैंने उन्हें ससम्मान समझा दिया और उनके पाठकों ने भी मुझे उनसे ज्यादा अप्रीशीऐट किया।

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वैसे वह इकलौते पत्रकार नहीं है। जैसे दिल्ली मे लुटायनी पत्रकार होते हैं लखनऊ मे 2 bhk पत्रकार होते हैं। ऐसे ढेरों पत्रकारों की इस समय दिली ख्वाहिश है बस एक बार अखिलेश फिर से आ जाएँ तो बुढ़ापे मे हमें भी थोड़ा सा सरकारी पेंशन का सुख मिल जाए। वैसे कुछ जवान पत्रकार भी हैं इस लाइन में।

 

आप जब कभी ऐसे लोगों की समीक्षाएं पढ़ें, ध्यान मे रख कर पढ़ें कि वह समीक्षा एक मजबूर छोटे से लालच मे फंसे पत्रकार की है। मजबूरी का फायदा न उठायें, अब मैंने भी उन पत्रकार अंकिल को जलील करना बंद कर दिया है।
पत्रकार अंकिल मेरे सद्भावनाएं आपके साथ हैं।
पर आएगा तो योगी ही।

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