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एक वीडियो एसएसपी महिला की

मधुलिका शची

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एक वीडियो एसएसपी महिला की चल रही है जिसपर लोग तालियाँ बजा रहें हैं, कह रहे हैं फेमिनिज्म पर प्रहार है,
मैं भी प्रशंसा में पोस्ट लिख ही रही थी कि एकायक मेरी कलम उस वीडियो में बिल्डअप की जा रही एसएसपी के माध्यम से मातृत्व की छवि की आलोचना में बदल गयी…..
मैं लिख गयी कैसे ये बड़े अफसर महिला पुलिस को अपनी नौकरानी बना लेते हैं, कैसे एक पुलिस वाला इनका नौकर बन जाता है ,
ऐसी महिलाएं उन्हें क्या बताएंगी
जो प्राइवेट जॉब कर रही हैं और 30 हजार , 60 हजार , 10 हजार, पांच हजार पेमेंट पाने वाली महिलाओं को बताएंगी
कि कैसे मैनेज करना है …?
मैं हमेशा से राक्षसी विचारधारा का विरोध करती आ रही हूँ और मेरे हिसाब से हर वो विचारधारा राक्षसी हो जाती है जो अतिवाद का पालन करती है, जो किसी की स्थिति परिस्थिति पर बिना गौर किये उसे आदर्शवाद का पाठ पढ़ाती है…..
फेमिनिज्म आखिर आया कहाँ से..?
किसी की अति से ही आया न, जब किसी ने महिलाओं को महत्व देना ही बंद कर दिया, उनकी सुनना ही बंद कर दिया तब आया न..?
जब उनपर कितनी पाबंदियां होनी चाहिए इस पर मोटी मोटी किताबें लिखी गयी तभी आया न..?
हम अपने शैतान खुद पैदा करते हैं औऱ खुद की गलती कभी नहीं मानते, बल्कि बलपूर्वक अपनी गलती को सही ठहराने का पूरा प्रयत्न करते हैं,
गांव की एक बुजुर्ग महिला से मैं एकबार बात कर चुकी हूँ इन सभी विषयों पर तो उन्होंने बताया कि आज से सालों पहले ऐसा होता था कि यदि घर के बड़े मर्द घर के बाहर ( दुआर) खड़े हैं तो हम लोग कुएं तक नहीं जा सकते थे,
लैट्रिन करने तक की समस्या होती थी, दोपहर का वक़्त होता तो इधर उधर देखकर चुपके से निकलते , अन्यथा पेट दबाये रात होने का इंतज़ार करते…..
सोचिये ये स्थिति हुआ करती थी शायद यह बात 40 साल पुरानी हो,
यक़ीनन मां के गर्भ से बच्चा पैदा तो होता है पर वो माँ को समझ नहीं पाता, उसकी पीड़ा को समझ नहीं पाता….
वही बच्चे बाद में एक झटके में ही फेमिनिज्म को समाज के लिए जहर बता देते हैं,
किसी भी समस्या को समझने और उसके सॉल्यूशन की तरफ़ बढ़ने से किसी को मतलब नहीं, बस शोर करने से मतलब है…..
जितना फेमिनिज्म का अतिवाद बुरा है उतना ही फेमिनिज्म को एक झटके में गलत कह देना बुरा है , उससे भी कहीं अधिक यह पाप है क्योंकि आप गद्दारी करते हो कोख से,
कोई भी माँ अपनी पीड़ा नहीं बताती और उससे भी अधिक नालायक वो औलाद होती है जो माँ की आंखों में पीड़ा नहीं देख पाती, और कहते हैं मेरी माँ ने बताया ही नहीं कभी,
अरे जड़ बुद्धि मनुष्य तू कभी अपनी माँ का हुआ.!!!!!!
प्रश्न कर स्वयं से..!!!
लो यह भी पोस्ट बन गयी जबकि मात्र 3 लाइन लिखने का मन था..

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