अभिव्यक्ति की सहज उपलब्धि के कारण हिंदुओं ने ढेर सारे मोर्चे खोल दिये हैं। सबसे ज्यादा अध्यात्म पेला जा रहा है। ये मंत्र, उपासना करो तो मन की शांति मिलेगी।
-जातीयता का गौरव भी बढ़ाना है।
-आरक्षण के विरोध में आंदोलन भी खड़ा करना है।
-मंदिर, कर्मकांड, मूर्तिपूजा के मंडन/खंडन की पोस्ट भी पेलनी है।
-अपनी-अपनी जाति के हिसाब से ऐतिहासिक पात्रों के गलत कामों को जस्टीफाई भी करना है।
-बीच-बीच में किसी फेसबुकिये दुश्मन से खुन्नस निकालकर ट्रोलिंग का आयोजन भी करना है, चाहे वह सरकार से किसी बिंदु पर निराशा की अभिव्यक्ति हो या किसी सामाजिक मसले पर सार्थक चिंता ही क्यों न हो।
तो होता यह है कि इन मुद्दों पर हम झगड़ते रह जाते हैं और असली ‘साँप’ यानि इ स्लामिक आतंकवाद का मुद्दा निकल जाता है।
वास्तव में सोशल मीडिया पर हिंदुओं के लेखन का केंद्र एक ही बिंदु पर निश्चित होना चाहिए और वह है–‘सत्ता पर नियंत्रण’
एक समय था जब राजनीति धर्म के पीछे चलती थी लेकिन यह कड़वी हकीकत है कि अब धर्म घायल है और उसे पुनः आगे लाने के लिए राजनीति का दामन ही थामना होगा।
आप कुछ प्रसिद्ध लेखकों को देखिये जिनका लेखन अपने विषय पर केंद्रित होते हुए भी दृष्टि सदैव ‘हिंदू सत्ता’ की मजबूती पर रहती है।
स्वामी चिदम्बरानंद जी, मुदित मित्तल धर्म, समाज व राजनीति पर,
अमित सिंघल सर अर्थशास्त्र पर,
पुष्कर अवस्थी सर जियोपोलिटिक्स पर, रंजय त्रिपाठी जी वामपंथ पर,
त्रिलोचन नाथ जी, सर्वेश तिवारी, शिव कुमार जी, प्रवीण मकवाना, अंकित राजपुरोहित, अंकित शर्मा, नरेंद्र तिवारी साहित्य पर,
अजीत प्रताप सिंह, मान जी इतिहास पर
नितिन त्रिपाठी, अजीत सिंह भाई साहब, गजानंद पारिख जी, दिलीप पांडे, अवनीश पी. एन. शर्मा जी क्षेत्रीय व राष्ट्रीय राजनीति पर,
भूपेंद्र सिंह समाज व राजनीति पर
अभिजीत सिंह , अवतार के अग्निहोत्री इस्लाम व सिख इतिहास और हिंदू संस्कृति पर,
अभिजीत श्रीवास्तव व अविनाश डाटा एनालिसिस पर,
पारुल सहगल फ़ूड एंड टूर पर,
ज्योति अवस्थी जी, बबीता जी, दिव्या मिश्रा रॉय जी, नारी सशक्तिकरण व राजनीति पर,
प्रामाणिक लेखन करते हैं। ये सभी अपने विषयों के धुरंधर ज्ञाता हैं लेकिन इनमें से कोई भी राजनीति और विशेषतः इ स्लामिक आतंकवाद के विरोध में ‘हिंदू सत्ता’ की सतत आवश्यकता से अपनी दृष्टि कभी नहीं हटाते हैं।
इनमें से कई लोग कई बार मोदी सरकार से असहमति भी रखते हैं और अभिव्यक्त भी करते हैं लेकिन ‘हिंदू सत्ता’ के प्रश्न पर उनके समर्थन का केंद्र संघ व भाजपा सरकारें ही हैं। इनका विरोध सिर्फ उतना ही रहता है जितना घर के अंदर अपने बुजुर्ग के किसी निर्णय पर होता है।
इन सभी के लेखन में असाधारण मैच्योरिटी झलकती है।
लेकिन बेलगाम फेसबुक लेखन ने यहाँ लाइक व कमेंट की एक ऐसी आभासी भूख पैदा कर दी है जो निरंतर उन्हें कुछ न कुछ लिखने, पोस्ट करने को उकसाती रहती है।
नतीजा?
कूड़ा करकट तथ्य, इतिहास के नाम पर काल्पनिक कहानियाँ, सरकार को निरंतर गालियां, समाज व देशकाल से विपरीत धर्म व्याख्यान, मूर्खता की हद तक जाती चमत्कारिक घटनाओं व कॉन्सपिरेसी थ्यूरीज की कल्पनाएं, प्रतिदिन प्रायः परिवार कुटुंब के सदस्यों की झांकीं और फिर अपेक्षानुरूप लाइक्स न आने पर प्रसिद्ध लेखकों को कोसा कासी।
इन सारे कारणों से फेसबुक पर हिंदुत्ववादी लेखन अपनी गंभीरता छोड़कर दम तोड़ रहा है।
क्या आपको नहीं लगता कि हमारे 80% लेखन में केंद्रबिंदु ‘राजनीतिक सत्ता’ होनी चाहिए और वह भी पूर्ण प्रामाणिक, चाहे आप किसी भी विषय पर लिखते हों?
हमारा ध्यान आलोचनात्मक रहते हुए भी हिंदू सत्ता की निरंतरता पर रहना चाहिए क्योंकि पीएफआई के मिशन 2047 को केवल तभी रोका जा सकता है जब आपकी हर गतिविधि का केंद्र राजनीति व हिंदू सत्ता की सतत मजबूती हो।
ध्यान रहे उन्हें सिर्फ दस प्रतिशत मुस्लिम चाहिए जबकि उपलब्ध 100% हैं और इधर हमें 51% न्यूनतम चाहिए लेकिन अभी हिंदुत्व को समर्पित पूर्णतः उपलब्ध केवल 10% हैं।(ये भी ज्यादा ही लिख दिया है)
सोचकर देखिये, आपका लेखन किस दिशा में जा रहा है।