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ओलम्पिक खेल

Nitin Tripathi

by Nitin Tripathi
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एक समय ओलम्पिक खेल की बात है, भारतीय टीम के जिस ट्रेक एंड फ़ील्ड खिलाड़ी से सबसे ज़्यादा उम्मीदें थीं, वह खिलाड़ी खेलों में हिस्सा लेने गए, गोरी लड़की ने हाथ मिला दिया पिघल गए. स्पोर्ट्स भूल उसके पीछे पड़ गए, बड़ी कांट्रवर्सी हुई. किसी तरह से मामला सुलझा, उलझना भी क्या था उनकी जेब में चबन्नी न थी कर लो मुक़दमा.

ऐसी प्रतियोगिताओं में भारतीय खिलाड़ियों से मेडल जीतना दूर उल्टे यही बड़ी बात हो जाती थी कि जिस वर्ग में गए हैं उसमें हिस्सा मात्र ले लें. कई बार तो इतना अच्छा विदेशी खाना पीना देख सब संयम खो बैठते थे और वजन ज़्यादा हो जाता था तो हिस्सा न ले पाते थे. साथ गए कोच / अधिकारी आदि तो वैसे भी सरकारी बाबू होते थे घूमने गए होते थे उन्हें इन सब से मतलब भी न था.

हम सब सामान्य जनता थे, दिल को बहलाते थे खेल में हिस्सा लेना महत्वपूर्ण है पदक जीतना नहीं. अमेरिका एक पूँजीवादी देश है जिसने नशलीय उत्पीड़न किया है चार सौ साल पूर्व रेड इंडीयन पर अत्याचार किए, उसका पदक जीतना मायने नहीं रखता. पदक तालिका में हम कभी ऊपर से देखते ही न थे, नींचे से देखते थे, भारत का नाम न दिखता तो एक तिहाई नींचे से ऊपर देखते भी न. फ़िर पाकिस्तान का नाम ढूँढते, प्रायः वह हमसे ऊपर होते और हम दिल को तसल्ली देते कि एक ही तो जीते, हमने शून्य जीता कोई बात नहीं.

आज भारत के लिए पदक मायने ही नहीं रखते. थोक के भाव बोरियों में आने लगे हैं. बदला बस इतना है कि खिलाड़ियों को उनके कौशल का पुरशकार मिलने लगा है. अब खेल में पैसा आ गया है तो खिलाड़ियों को मालूम रहता है, उन्हें केवल एक कार्य करना है, मैदान में सर्व श्रेष्ठ प्रदर्शन देना है, इतना वह कर ले जाएँ लाइफ़ सेट है. पर्याप्त एक्सपोज़र है, विदेशों में आते जाते रहते हैं तो अब जब गोरी मेम हाथ मिलाती है तो पिघलते नहीं. अच्छा खाना दिख जाए तो भी संयम रखते हैं, उससे अच्छा उन्हें ऐसा ही मिलता रहता है.

आगे भी ज़रूरत इसी बात की है कि खेलों को सरकारी कंट्रोल से मुक्त कर दिया जाए. सवा अरब का देश है. गाँव गाँव में हीरे उपलब्ध हैं. बस मौक़ा नहीं मिलता, संशय रहता है कि खेलों में जाएँगे तो कमाएँगे खाएँगे क्या. ओपन मार्केट फ़्री इकॉनमी होने से ये सब समस्याएँ समाप्त हो जाती हैं. खिलाड़ी एंडोर्समेंट, विज्ञापन, स्पान्सर्शिप आदि से इतना कमा लेते हैं कि उन्हें बाक़ी कुछ सोंचने की आवश्यकता नहीं रहती.

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