अच्छा, कट्टर हिंदुओं, ज़रा बताओ माता सीता की मां का क्या नाम था?
नवाह्नपरायण का तीसरा दिन था। बालकांड आज खत्म हुआ। शिव के बाद राम जी भी गृहस्थ बन चुके। वैसे, आज अधिकांश वर्णन जनकपुरी में राम-लक्ष्मण की उपस्थिति, भ्रमण, धनुष-यज्ञ और शादी-बियाह का ही है।
बाबा ने जैसा बताया है, उस हिसाब से पता चलता है कि मैथिल प्राचीन काल से ही अति घुलनशील, बाहरी दुनिया में रुचि रखनेवाले और गपाष्टक के शौकीन थे। अब देखिए न, बाबा कहते हैं कि जब राम-लखन दोनों भाई मिथिला की गलियों में निकलते हैं तो स्त्रियां झरोखों से लटक गयी हैं, पुरुष गलियों से झांक रहे हैं, मने आबालवृद्ध नर-नारी दोनों भाइयों की एक झलक पाने को परेशान हैं।
मैथिल प्राचीनकाल से ही भोजनभट्ट भी हैं। अब बेचारे तुलसी बाबा ठहरे बैचलर टाइप, स्वपाकी। कहां से व्यंजनों की सूची लाते। तो, विवाह के भोज को बस दो लाइन में टाल देते हैं–इतने सारे व्यंजन बने और परोसे गए कि गिनना मुश्किल है।
वैसे, ये बात शुरू इसलिए की थी कि तनया प्रफुल्ल गड़करी का लिखा पुराना याद आ गया। क्या मिलेनियल्स को पता है कि 1947 से पहले तक जनकपुर से अयोध्या प्रशासन को कुछ राशि भेजी जाती थी जो राजा जनक द्वारा अयोध्या को उपहार में दी भूमि से मिलती थी।
इस परंपरा को 47 के बाद बंद कर दिया भारत सरकार ने। दो देशों के मध्य रिश्तेदारी का मान खत्म कर दिया! इसलिए कि हमारे देश के पहले प्रधानमंत्री दुर्घटनावश हिंदू जवाहरलाल नेहरू को हरेक हिंदू परंपरा उनके वेस्टर्न सेंसिटिविटी के खिलाफ जाती प्रतीत होती थी।
और, क्या मिलेनियल्स को ये पता है कि आज भी मिथिला में लोग बेटी का नाम सीता नहीं रखते और अवध में शादी करना भी पसंद नहीं करते। बेचारे रामजी तो जमाई और बहनोई हुए, तो गाली सुनते ही रहते हैं। अस्तु….
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अच्छा। शिव के विवाह-वर्णन के बाद राम जी का विवाह-वर्णन गजबे कंट्रास्ट में है। ऐसा लगता है किसी सनातनी बूढ़े के पास बैठकर एकाध घंटे धर्म-चर्या के बाद किसी मिलेनियल के साथ रॉक कंसर्ट में चले गए हों।