Home अमित सिंघल कश्मीर में कुछ समय से आम नागरिको की हत्या

कश्मीर में कुछ समय से आम नागरिको की हत्या

अमित सिंघल

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कश्मीर में कुछ समय से आम नागरिको की हत्या का समाचार हेडलाइंस में है।
आकड़े क्या कहते है?
इस वर्ष आतंकियों ने अब तक 18 सिविलियन्स मार दिए है। इनमे से 12 मुस्लिम है; बाकी हिन्दू।
मई 2014 से 4 अगस्त 2019 तक आतंकियों ने 177 सिविलियन्स एवं 406 सुरक्षाकर्मियों को मार दिया था।
5 अगस्त 2019 से नवंबर 2021 के दौरान आतंकियों ने 87 सिविलियन्स एवं 99 सुरक्षाकर्मियों को मार दिया।
9 अगस्त 2011 को लोक सभा में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में सोनिया सरकार ने बताया कि वर्ष 2010 की “हिंसक घटनाओ” (ध्यान दीजिये – हिंसक घटना) में 102 सिविलियन्स मारे गए थे।
कश्मीर में आतंकी घटनाओ में कमी आयी है जो वर्ष 2018 में 417 से घटकर वर्ष 2019 में 255, 2020 में 244 और 2021 में 229 हो गई है।
जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की शुरुवात के बाद (1989 से 5 अगस्त 2019 तक) आतंकवादी घटनाओं में 5886 सुरक्षाकर्मी मारे गए थे।
दूसरे शब्दों में, अनुच्छेद 370 हटाने के बाद कश्मीर में आतंकी घटनाओं, सिविलियन एवं सुरक्षाकर्मियों की हत्या में भारी कमी आयी है। 5 अगस्त 2019 के बाद, सुरक्षाबलों ने अब तक 495 आतंकियों को मार गिराया है। अधिकतर समय कश्मीर की स्थानीय पुलिस एवं आईपीएस इन आतंकियों से निपट रहे है; अपने प्राण न्योछावर कर रहे है।
पत्थरबाज़ी की घटना समाप्त हो गयी है। बचे-खुचे आतंकी हत्या के लिए कट्टे एवं रिवाल्वर का प्रयोग कर रहे है क्योकि AK-47 की सप्लाई समाप्त हो गयी है। उनका इंटेलिजेंस नेटवर्क ध्वस्त हो चुका है; उन्हें पता है कि उनके किसी भी इलेक्ट्रॉनिक कम्युनिकेशन को, चाहे वह कितना भी गोपनीय क्यों ना हो, सुना जा रहा है।
अगर किसी को लगता था कि अनुच्छेद 370 हटाने के बाद आतंकी चुप बैठेंगे, तो वह भ्रम में है। लेकिन आतंकी एवं उनके समर्थक भी भ्रम में है अगर वे सोचते है कि वे दहशत जारी रख सकते है।
इस वर्ष किसी भी सिविलियन की हत्या करने वाले अधिकतर आतंकी बस एक सप्ताह तक ही जीवित रह पाए है। अनुच्छेद 370 हटाने के बाद एक दशक लग सकता है कि आतंकवाद को समूल समाप्त कर दिया जाए।
आतंकियों की रणनीति यह है कि ऐसी हत्या करके वे भारत के अन्य भाग के हिन्दुओ को भड़का दे; सरकार को कोई ऐसा कदम उठाने के लिए विवश कर दे जिससे कुछ समय तक वाह-वाही तो मिल सकती है; लेकिन उसका ग्राउंड पर कोई प्रभाव नहीं होगा। उल्टा आतंकियों को अपने कैडर के लिए अन्य लोग मिल जाएंगे।
आतंकी जानते हैं कि उन्हें केवल किसी एक सिविलियन को मारना है क्योकि सेनाएं प्रत्येक व्यक्ति की रक्षा नहीं कर सकती हैं। उन्हें पता है कि जब आतंकवाद चरम पर था; मुशर्रफ का खुला समर्थन था; रॉ के चीफ अमरजीत सिंह दुलत उनके साथ विनम्रता से पेश आना चाहते थे (अमन की आशा, पडगौंकर पैनल; यासीन मलिक को फ्रीडम फाइटर बतलाना इत्यादि), तब भी वे प्रति वर्ष कुछ सौ लोगो को मार पाए।
याद रखें, आतंकवादी की ताकत इस बात में नहीं है कि वह क्या कर सकता है। उनकी ताकत इस बात में निहित है कि हम उनके द्वारा की गयी हत्या पर कैसी प्रतिक्रिया करते हैं। यदि हम उनके हमलों पर अति-प्रतिक्रिया करते हैं, तो हम परोक्ष रूप से उन्हें मजबूत करते है।
नोबेल प्राइज विजेता अर्थशास्त्री प्रोफेसर डानिएल कानमेन (Daniel Kahneman) लिखते है कि अधिकतर लोग किसी भी निर्णय या निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए अपने इमोशन का सहारा लेते है: क्या हम इसे पसंद करते है या इससे घृणा करते है? उदहारण के लिए, प्रति एक लाख पैसेंजर की यात्रा को लिया जाए तो हवाई यात्रा की तुलना में कार दुर्घटना में कही अधिक, कई गुना लोगो की मृत्यु होती है। लेकिन कई लोग प्लेन यात्रा से डरते है, जबकि कार में आराम से बैठ जाएंगे। कभी-कभार होने वाली प्लेन दुर्घटना का समाचार कई दिनों तक चलता है, जबकि उससे कई गुना अधिक लोग प्रतिदिन कार दुर्घटना में मारे जाते है।
इसे प्रोफेसर कानमेन availability cascade कहते है जिसमे किसी घटना पर होने वाला इमोशनल चेंज या हमारी मानसिक अवस्था हमारे निर्णय को प्रभावित करती है; ना कि उस घटना का ओवरआल परिदृश्य में महत्त्व। इस सन्दर्भ में वे आतंकी घटनाओं के प्रति हमारी प्रतिक्रिया का उदहारण भी देते है।
तभी राहुल, अखिलेश, आप पार्टी, कांग्रेस समर्थक, नक्सल, खान मार्केट गैंग इन आतंकी घटनाओं की आड़ में कश्मीर फाइल्स मूवी की आलोचना कर रहे है; 370 हटाने को लेकर व्यंग्य कस रहे है।
लेकिन यह नहीं बतला रहे कि कश्मीर में बैंक मैनेजर, टीचर और कई मासूम लोग को कौन मार रहा है? सोनिया सरकार के समय में कौन मार रहा था? क्यों मार रहे है? ये हत्यारे किस आइडियोलॉजी से प्रेरित है? प्रधानमंत्री जी कश्मीर में अमन कायम करने के लिए तुरंत क्या कदम उठा सकते है?
वही कांग्रेसी जो अपने समय आँतकवाद को आँतकवाद ना कहकर हिंसक घटनाएं कह रहे थे।
भारत में हिंसा भड़काने के लिए अभिजात वर्ग अलगाववादी तत्वों, कट्टरपंथियों, नक्सलियों, घुसपैठियों और अपराधियों का उपयोग कर रहा है।

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