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कहानी एक बूढ़े चाचा और एक पत्रकार की

रिवेश प्रताप सिंह

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पत्रकार- चाचा! इस सरकार से खुश हैं आप??
नाहीं
पत्रकार- “क्या परेशानी है आपको!!”
“एक तो हमरे काम का कुछ मिला नाहीं! और जो मिला वो कछु काम का नाहीं!!
पत्रकार- “चचा!आप तो प्रधानमंत्री आवास और शौचालय दोनों दबा के बैठे हैं! तब भी खुश नहीं???”
“कवन काम का है इ सब!!
मकान में एक कमरा मिला वो भी तीसरी नम्बर वाली पतोहिया कब्जा कर ली। अउर बाहर बरामदें में सुते जाओ तो बड़की कोंच के जगा देती है।
पत्रकार-“बड़की कौन??”
“दिनेशवहा बहू !!”
पत्रकार- “दिनेशवा!!! इ कौन??’
बड़की पतोहिया मतलब दिनेशवा क मेहरारू…. कहत है कि रऊरे इहां सूतब त, हम कहां ओल्हरब। जायीं भूसउला में सुत्ती..ऊंहा सुत्तब त गाय-गोरू क भी अंदाजा मिली।
पत्रकार (बात पलटते हुए)- “और शौचालय क का हाल बा”
“छोड़ी साहब! हगनौरी क बात जिन करीं! ओके देखते ही ओहलाई बरेला। एक्कै जगहीं बारह मनई। उहो, त के ऊपर।
पत्रकार- “तर के ऊपर!!! इसका का मतलब!”
“मतलब इ साहब कि ज्यों हगनौरी में घुसत हैं त घर वाले दरवज्जा अइसन भड़भड़ावत हैं जइसे कुतिया बियाये के खातिर माटी खोदत हो। भीतर जात देर नाहीं कि बाहर सबके पेट में आग लग जात। हम त कहित कि मैदाने ठीक था।
पत्रकार- “त काहें न जाते मैदाने।”
“मन त बहुत करत! लेकिन लोटा लेके मैदान में जात हमें लाज लगत।”
पत्रकार- “जब एतना परेशानी त लाज किस बात की??”
“साहब बात इ है कि हमार गांव खुले में शौच से मुक्त हो चुकल बा और हमहीं के कलेक्टर साहब बुलाकर पुरस्कार देहलें बाटं। अब आपे बताईं कवने मुहें हम लोटा लेके मैदान होवे जायीं।”
पत्रकार- तब का झूठ्ठे एतना अईठत बाटं मरदे…जब कुल समान और सम्मान दूनो तोहरे मुट्ठी में बा।

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