किले में एक दरार पूरे किले को ढहा सकती है और हिंदुत्व एक ऐसा किला है जिसपर बाहर से निरंतर हमले हो रहें हैं ऐसी स्थिति में अंदर से एक भी दरार किले की सुरक्षा के लिए एक खतरा है।
जग्गी वासुदेव को भी और आपको ये समझ लेना चाहिए कि यहां बात तत्वदर्शन की नहीं है।
यहाँ बात सांस्कृतिक युद्ध की है और हम अस्तित्व के संग्राम में फंसे हैं।
चाहे मोरारी बापू हों या जग्गी वासुदेव किसी को अधिकार नहीं कि किले में दरार पैदा करें।
क्या किसी ने जाकिर नाइक के मुँह से और पीस टीवी पर भगवद्गीता के श्लोक सुने?
फिर हिंदू धर्मगुरुओं को अली मौला पर नाचने की हुड़क क्यों मची रहती है। वहाँ तो कोई मु स्लिम भी न थे जिन्हें आप रिझाना चाहते हों।
व्यक्तिगत स्तर पर कुछ भी हो लेकिन सामूहिक स्तर पर ऐसा कुछ होना आपकी विशालता का नहीं बल्कि उनकी ‘विजय’ और हमारी ‘मूर्खता’ का प्रतीक है।
समस्या यह है कि आपकी निजी पसंद अगर मोरारी बापू हैं तो आप कुछ भी करके उनका बचाव करेंगे और जग्गी वासुदेव हैं तो उनका परंतु आपकी इस सोच में हिंदुत्व पीछे छूट जाता है जबकि मुख्य वही होना चाहिए।
हिंदुत्व हमारा किला है और जग्गी वासुदेव हों या शंकराचार्य, इसके सेनापति। आपको न तो गलती करने का अधिकार है और न कोई मानदेय मांगने का। इसकी सुरक्षा ही आपका पुरुस्कार है।
अगर आप किसी संवैधानिक पद पर होते तब एक बार को समझा जा सकता था पर समस्या तब उत्पन्न होती है जब व्यक्तिगत स्तर पर एक ऊंचाई प्राप्त कर स्वयं को ‘विश्वमानव’ सिद्ध करने की हीनताबोध जन्य महत्वाकांक्षा उत्पन्न होती है।
आम फेसबुकिये राइटर से लेकर जग्गी वासुदेव जैसे प्रसिद्ध इंफ्ल्यूएसर में इस हीनताबोध भरी महत्वाकांक्षा का होना ही हिंदुत्व की सबसे बड़ी कमजोरी बनती जा रही है।
जग्गी वासुदेव के लिए मेरे मन में सम्मान है पर मेरे लिए हिंदुत्व प्रथम है।
यह भावना ही महत्वपूर्ण है और उम्मीद है जग्गी वासुदेव जी इसे अहं का प्रश्न न बनाकर व्यापक संदर्भ में समझेंगे।
Note:- मेरी पोस्ट की और सद्गुरु के कृत्य की आलोचना विवेचना स्वीकार है लेकिन कोई भी गाली गलौच मुझे आपको ब्लॉक करने पर विवश कर देगी।