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कुकर्मी व्यक्ति बना पंडित

Nitin Tripathi

by Nitin Tripathi
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किसी शहर में एक व्यक्ति थे जितने कुकर्म होते हैं वह उन सबमें दक्ष थे. दारू नाली में गिरने से लेकर गाँजा तक, व्यभिचार, कुकर्म कुछ न था जो छोड़ा हुआ हो. जीवन यापन के लिए छोटी मोटी चोरियाँ, कभी कभार डकैती और कॉंट्रैक्ट मर्डर का भी कार्य करते थे. जेल आना जाना लगा रहता था. संक्षेप में सर्व गुण सम्पन्न थे.

 

एक बार घर से ग़ायब हो गए. घर वाले भी जाने कि चलो छुट्टी मिली.
कुछ वर्षों पश्चात एक मंदिर दर्शन के लिए गया था, साथ में एक मित्र भी थे. मित्र ने बताया मंदिर के बाबा जी बहुत पहुँचे हुवे संत हैं. जो कह देते हैं सब सच होता है. मैं यद्यपि इस सबमें यक़ीन नहीं करता, पर देखने में क्या हर्ज था. वहाँ पहुँचा लम्बी लाइन थी भक्तों की. इन सबके बीच हमारे वही परिचित बाबा बने बैठे थे. थोड़ी देर वहाँ बैठ उन्हें अब्ज़र्व किया. व्यक्ति वही थे, हाव भाव बदल गए थे. चेहरे से तेज झलकने लगा था. हर व्यक्ति को उसकी समस्या की सलाहे दे रहे थे – जो भक्तों का कहना था सच होती थीं.
मैंने अब्ज़र्व किया, भक्त ने पूँछा बाबा जी नौकरी कब मिलेगी? बाबा जी ने एक तीखी नज़र से देखा और बोला अगस्त से आरम्भ करना और दिसम्बर तक मिल जाएगी. और नहीं मिली तो फ़िर लम्बे समय न मिलेगी. मुझे पता था अब यह भक्त अगस्त से दिसम्बर के बीच जान लगा देगा नौकरी पाने के लिए और इस तरह मेहनत करेगा तो मिल ही जाएगी. कितनी ही महिलाओं के भूत प्रेत चुड़ैल वह देख कर चिल्ला कर भगा देते थे. उसमें भी नब्बे प्रतिशत खेल सायकोलाजिकल ही होता था. उनकी वेश भूषा रौब देख पेशेंट को यक़ीन हो जाता था भूत भाग गए.
मेरी परिचित से बात हुई. समझ आया भक्ति और स्थान की महत्ता. वह जीवन से परेशान हो गए थे. यहाँ आए मुफ़्त में खाना पानी मिलता रहता था. दाढ़ी बढ़ आई लोग बाबा जी कह कर पैंर छूने लगे,  सात्विक स्थल था, इनमे स्वयं ही बाबा जी वाले भाव जागृत हो गए. जनता इनसे जो पूँछती यह अपने दिमाग़ से जो ठीक लगता वह उत्तर देते. जनता उसे भगवान का आदेश समझ पूरी श्रद्धा से पालन करती और ज़्यादातर केस में सफल होती.
बाबा जी ने बहुत ख्याति पाई. उनका जीवन भी सफल हो गया, जीवन को नई दिशा मिल गई. उनकी भविष्य वाणियों से हज़ारों भक्तों का भी कल्याण हुआ.
जब नेम फ़ेम हो गया तो उनके घर वाले बाबा जी को फ़िर से उनके घर वापस लेकर चले गए. बाबा जी नहीं सुधरे थे, उन्हें जगह और भक्ति ने सुधार दिया था. घर पहुँचे और फ़िर उसी तरह से दारू, गाँजे व्यभिचार में उनकी मृत्यु हुई.
भक्ति में यही श्रद्धा होती है कि कितना भी पतित व्यक्ति हो कल्याण होता है और समर्पण की ताक़त होती है कि भविष्य वाणी में जो आदेश मिल जाता है मनुष्य उसे मेहनत कर सच कर दिखाता है और भविष्यवाणी सच हो जाती है.

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