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कोल्डड्रिंक की कांच या पारदर्शी बोतलें हर लिहाज़ से बेहतर

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कोल्डड्रिंक की कांच या पारदर्शी बोतलें, हर लिहाज़ से बेहतर हैं। कम से कम पीते वक्त उसके गिरते स्तर तथा उसके समाप्त होने की सूचना, नंगी आंखों से मिल जाने के बाद ग्राहक तसल्ली के साथ, बोतल को ‘बोतल स्टैंड’ में लगाकर चैन की सांस लेता है।

 

इधर जब से कोल्डड्रिंक्स, जूस, मट्ठा, लस्सी आदि पाइप लगाकर कागज़ के डिब्बे में आने लगे तब से ग्राहकों के भीतर एक अलग तरह के भय और बेचैनी का उदय हुआ। दरअसल जब वो प्लास्टिक पाइप को डिब्बे के जिस्म में भीतर तक गोते लगाकर सुड़कता है तो 200 ML मे से 195 ML शुरुआत के 15 सेकेंड में ही सुड़क लेता है लेकिन अंतिम 5 ML को ढूंढने, सोखने तथा सुड़कने में जो जिल्लत तथा ज़लालत का सामना करना पड़ता है वो काबिले बयां नहीं। अच्छा खासा आदमी कुल 5ML के लिए डिब्बे के चारों कोनों उसकी चारों भुजाओं तक रेंगते-रेंगते पूरे समतल पर बीन बजाता है। उसके बाद भी उसे तसल्ली नहीं मिलती। ऐसा लगता है मानों उसके डिब्बे में कोई रहस्यमई कुंआ खुदा हो!

 

 

हांलांकि इसमें गलती किसी की भी नहीं! इसको ऐसा समझें कि आपको बोरे में भरकर, एक सांप तथा उसके साथ एक लाठी दे दी जाए तथा यह निर्देश दिया जाये कि लाठी बोरे में ठूंसकर-ठूंसकर दस बारह वार में सांप का काम..इसको ऐसा समझें कि आपको बोरे में भरकर, एक सांप तथा उसके साथ एक लाठी दे दी जाए तथा यह निर्देश दिया जाये कि लाठी बोरे में ठूंसकर-ठूंसकर .तमाम करना है। सोच कर देखिए कि अन्त तक आप यह तसल्ली नहीं कर पायेंगे कि सांप का काम अब तमाम हो चुका है…आप भ्रम में रहेंगे पता नहीं पूंछ पर लाठी गिरी है या पीठ पर! क्या पता सिर साबुत ही बच गया हो… सच! अंधेरे की टोह का अंदाजा लगाना एक टेढ़ी खीर है।

 

 

मित्रों! आज एक आदमी की लाचारी और बेबसी को देखकर मुझे मजबूरन कलम उठाना पड़ा। हुआ दरअसल यूं कि एक दुकान पर, मेरे सामने एक निश्छल व्यक्ति ने एक अदद अमूल का छाछ (मट्ठा) खरीदा। उसके जिस्म से चिपकी प्लास्टिक पाइप को तलवार की तरह म्यान से निकाला, डिब्बे के जिस्म में घुसेड़ा…फिर शुरू हुई चूसने तथा सुड़कने की आम प्रक्रिया.. जैसा कि मैंने पहले बताया कि शुरुआत का 195 ML तो अगले 15 सेकंड में ग्रसनी के रास्ते उदरस्थ हो चला किन्तु अन्तिम 5 ML के लिए शुरू हुई पर्दे के भीतर की कसरत, रस्साकसी….

 

 

पाइप का एक सिरा मुंह में तथा दूसरा सिरा एक अंतहीन तलाश में लग गया। चारों कोनों, चारों भुजाओं पर पाइप घुमाकर पूरा तफ्तीश करने के बाद भी जब वो व्यक्ति पूर्ण वसूली के प्रति आश्वस्त न हो सका तो वह डिब्बा लेकर एकान्त में चला गया। वो डिब्बे के जोड़ों को उन जगह से जुदा करने लगा जहां से उसकी शक्ल डिब्बे जैसे बनती थी। जोड़ छूटने के बाद जब डिब्बे की शक्ल तकिये जैसे बनी तब उसने पाइप निकाल कर अलग किया। छेद पर डायरेक्ट मुंह लगाया तथा अपने दोनों हाथों से डिब्बे (अब जो तकिया बन चुका थी) के पेट तथा पीठ पर हाथ लगाकर/दबाकर उसके बूंद बूंद को चूस लिया। तब जाकर उस व्यक्ति की आत्मा तृप्त हुयी।

 

कुलमिलाकर कांच या पारदर्शी बोतलें ही ठीक हैं। कम से कम इतना जलील तो न होना पड़े वो भी कुल 5ML के लिए।

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