मैं जानता हूँ कि मैं महाभारत न्योत रहा हूँ लेकिन तलवार और मेरी प्रकृति एक ही है।
म्यान से बाहर निकल आई तो खून खच्चर के बिना वापस न होगी।
अब आपने बात छेड़ ही दी है तो पूरी कर ही दूँ।
आजकल राजस्थान में एक नया अभियान चल निकला है।
एक संघ की ओर से और एक राजपूत बन्नाओं की ओर से।
संघ ने जातिगत समरसता के लिए मुगलिया मनसबदार पद्धति का सहारा लिया है-
जाति A:- लो जी ये लो ये राजा तुम्हारी जाति का।
जाति B:- लो जी लो, ये योद्धा तुम्हारी जाति का
जाति C…… जाति D……. जाति X
आओ जी, हीरो बंट रहे हैं, अपनी-अपनी जाति का हीरो ले जाओ जी।
इतिहास न हुआ भंडारा हो गई कि आओ जी आओ अपना हीरो ले जाओ…
जाहिर है किसी को भी बुरा लगेगा अगर किसी की वल्दियत को बिना आधार के बदलोगे।
इधर राजपूत बन्नाओं ने अपनी घुटनों की बुद्धि से इसका अजीब प्रतिकार निकाला है
मानसिंह ‘जी’ और ‘मोटा राजा जी’ के कारण ही हिंदुत्व बच पाया वरना महाराणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी ने तो हिंदुओं से आत्महत्या करवा दी होती।
इन महानुभावों के अनुसार आज भारत में हिंदुत्व प्रातःस्मरणीयअकबर, मध्यान्हस्मरणीय मानसिंह व रात्रिस्मर्णीय मिर्जा राजे जयसिंह के कारण बच पाया।
इनके हिसाब से ग्वालियर के राजा और स्व. महाराज मानसिंह के पड़पोते महाराज राम सिंह तोमर सहित 20000 सर्वश्रेष्ठ राजपूतों का खून हल्दीघाटी में बहाकर मानसिंह ने हिंदुत्व की अमर सेवा की थी।
इसके अलावा मिर्जा राजे ने छत्रपति से सब कुछ छीनकर औरांगजेब के रहमोकरम पर धकेलकर फिर उन्हें बचाया ताकि आने वाली पीढ़ी कह सके कि मिर्जा राजे ने हिंदुत्व व छत्रपति पर कितना बड़ा अहसान किया था।
भारमल और मानसिंह का खून तब नहीं खौला जब अकबर चित्तौड़ में तीस हजार मेवाड़ियों के सिर कटवा रहा था और एकलिंगजी को करान का मीम्बर बनवा रहा था लेकिन तब तुरंत रजपूती जाग गई जब महाराणा ने अपना क्षोभ जाहिर कर दिया।
अकबर की गोद में बैठने की बजाय राणा उदयसिंह के पास जाते, राव चंद्रसेन को बुलाते और राणा सा से कहते हम आपकी अधीनता स्वीकार करते हैं।
अकबर की हिम्मत भी राजस्थान की ओर आने की होती क्या?
और तोप, अकबर की सैन्य शक्ति वगैरह के मूर्खतापूर्ण तर्क मेरे सामने मत रखो।
अकबर की कुल सेना दो लाख थी जबकि औरांगजेब की इक्कीस लाख तो तब कैसे इन्ही तीन मारवाड़, मेवाड़ और आमेर ने मुगलों को धूल चटा दी?
इस बात को स्वीकार करो कि अपनी पारिवारिक बेईमानी या कायरता के कारण भारमल और मोटा राजा ने घिनौने समर्पण से न केवल अपने यशस्वी पूर्वजों के नाम को डुबोया बल्कि मुगलों की नींव इस देश में मजबूत की।
फिर सारी सच्चाई जानने के बाद राजपूतों में ये मूर्खतापूर्ण सनक क्यों पैदा हुई, समझते हैं।
अब है क्या कि आप राजस्थान के राजपूतों का सांगठनिक ढांचा समझिए-
सबसे ऊपर जयपुर(आमेर), जोधपुर, मेवाड़ व बूंदी-कोटा के राजा,राणा, राव।
इनके नीचे सामंत(जागीरदार),
इनके नीचे ठिकानेदार
इनके नीचे आम राजपूत।
अब मेवाड़ को तो खास इंटरेस्ट है नहीं इस कवायद में लेकिन जोधपुर व जयपुर को इतिहास बदलवाना है इसलिए नीचे की रैयत को राजपूती स्वाभिमान के नाम पर भड़का दिया गया है।
कांग्रेस और वामियों ने इसमें जेएनयू से निकले एंटी आर एस एस तत्वों को घुसाकर पूरा मूवमेंट एंटीनेशनलिस्ट बना दिया है।
अनजाने में राजस्थान के ये बन्ने उसी राह पर जा रहे हैं जिसपर कभी भारमल व मोटा राजा चल पड़ा था।
संघ से मतभेद अलग बात है लेकिन अपनी महत्वाकांक्षा में संघ का विरोध वस्तुतः मु स्लिमों का समर्थन है और तब एक बात याद रखना, राजपूत केवल राजस्थान में ही नहीं हैं और महाराणा की आन ही सच्चे राजपूत की पहचान है, मानसिंह और मोटा राजा की गुलामी नहीं।
माउंट आबू की पवित्र अग्नि के समक्ष हिंदुत्व की रक्षा की जो शपथ उठाई थी वह राजपूत आज भी वैसे ही हैं और अपने शत्रुओं से अपना ध्यान कभी नहीं हटाते।
हिंदुत्व के बिना राजपूत वैसा ही है जैसे बिना तलवार के म्यान।

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