Home हमारे लेखकदयानंद पांडेय चुनावी समय में इतने दिनों तक ननिहाल का आनंद

चुनावी समय में इतने दिनों तक ननिहाल का आनंद

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अफ़सोस कि पुत्र मोह में सोनिया ने कांग्रेस की ऐसी-तैसी कर दी। आज भी पुत्र ननिहाल में आनंद ले रहा है। क्या इस चुनावी समय में इतने दिनों तक ननिहाल का आनंद लेना गुड बात है। फिर आप को अभी भी लगता है कि नरेंद्र मोदी सिर्फ़ हिंदुत्व का प्रतिनिधि है ? 2024 भी नरेंद्र मोदी के विजय के लिए आतुर है , बस जीवित रहे। हत्या न हो। यह लिख कर रख लीजिए। मैं किसी कमिटमेंट के तहत कभी नहीं लिखता। ज़मीन पर रहता हूं। सामान्य लोगों के बीच। जो पाता हूं , वही दर्ज करता हूं। जिस दिन भाजपा हारती दिखेगी , वह भी सब से पहले लिखूंगा।
अभी तो भाजपा बंपर वोटों से उत्तर प्रदेश विधान सभा जीतती दिख रही है। सपा तमाम उछल कूद के बावजूद डबल डिजिट पर ही रहेगी। दिक्कत यह है कि देश में विपक्ष के पास सत्ता पाने की ललक के सिवा कोई पक्ष नहीं है। इस के लिए मोदी नहीं , विपक्ष ही ज़िम्मेदार है। सहमति-असहमति , जीत हार अपनी जगह है। पर जनता और जनादेश का सम्मान न करना किसी के लिए शुभ नहीं है। असहमति जब घृणा और नफ़रत में तब्दील हो जाए , एकपक्षीय हो जाए तो भी लोकतंत्र ख़तरे में आ जाता है। दुर्भाग्य से आज की तारीख़ इसी घृणा और नफ़रत की साक्षी है।
मोदी नाम के दीमक का इलाज कांग्रेस के पास क्यों नहीं है। यही कांग्रेस की बड़ी मुश्किल है। कम्युनिस्ट ख़ुद ही जनाधार खो चुके हैं , अपनी हिप्पोक्रेसी में। और कांग्रेस ने मोदी और भाजपा के खिलाफ माहौल बनाने के लिए कम्युनिस्ट बुद्धिजीवियों को हायर कर रखा है। कांग्रेस के लिए बैटिंग करने वाले लेखक , पत्रकार भी अमूमन वामपंथी हैं। जो भारतीय परंपरा और मोदी के प्रति घृणा और नफ़रत के मारे हुए हैं। ज़मीनी सचाई नहीं , प्रतिबद्धता ही उन की थाती है। पोलिटिकली करेक्ट के मारे हुए हैं। कमिटमेंट की हिप्पोक्रेसी सेमिनारों में गगन विहारी बातें करने के लिए मुफ़ीद होती है। चुनावी लोकतंत्र में यह कमिटमेंट की हिप्पोक्रेसी काम नहीं आती। वामपंथी बुद्धिजीवियों को अब से सही , यह बात ज़रुर समझ लेनी चाहिए। घर में रोज आरती , भजन गाते हुए बाहर लाल सलाम की व्याधि और एन जी ओ की शाही समृद्धि भी एक जानी-पहचानी मुश्किल है। वर्ग शत्रु भूल कर जातिवादियों के लिए जंग के भी क्या कहने ! हिंदू राहुल गांधी का समर्थन एक अजब तिलिस्म है। तब जब कि धर्म अफीम है।

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