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जनसंख्या विस्फोट ने देश की दुर्गति की

Ranjana Singh

by रंजना सिंह
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जनसंख्या विस्फोट ने देश की जो दुर्गति की,उसमें आज सरकारी हो या गैरसरकारी, नौकरी की एक वैकेंसी निकलती है, हजारों लाखों की भीड़ उस अवसर को लूट लेने को टूट पड़ती है।अशिक्षितों की तो छोड़िए शिक्षित बेरोजगारों की जो बड़ी फौज खड़ी है,वह यह नहीं देखती कि यदि उसके पास इंजीनियरिंग एमबीए की डिग्री है तो वह केवल उससे संबंधित कार्यों के लिए आवेदन करे,, कहीं नगरनिगम के सफाईकर्मी हेतु भी वैकेंसी निकलती है तो सभी नाले में सफाई हेतु कूद पड़ते हैं।
सरकारी नौकरी छोड़कर (जहाँ अब भी नौकरी आपके कार्मिक गुणवत्ता से असम्बद्ध है,आप कितने भी कमाल के हों या निकम्मे हो,एकबार नौकरी में आ गए तो नौकरी जाएगी नहीं),,,आज प्राइवेट सेक्टर में ऐसी कोई जगह नहीं जहाँ कर्मचारी निश्चिन्त हो कि उसकी नौकरी पद सैलरी प्रोन्नति अबाधित अक्षुण्ण रहेगी।लोगों ने इसे स्वीकार लिया है और इसी कारण अपना बेस्ट देने की प्रतिबद्धता कर्मचारियों में होती ही है जो अन्ततः प्राइवेट सेक्टर के उन्नति का कारक रहा है।
आज 2 मिनट के लिए जब टीवी खोला और उसमें युवाओं को अग्निवीर योजना के विरोध में तोड़फोड़ आगजनी दंगा करते हुए देखा तो सन्न रह गयी।इन जैसे लोग जायेंगे अनुशासन के प्रतीक सैन्य सेवा में?
वैसे यह स्वतः स्फूर्त आंदोलनकारी भीड़ तो न थी,स्पष्ट था,,,किन्तु आश्चर्य कि इतनी बड़ी संख्या है अपने देश में ऐसे युवाओं की जिन्हें जो जब चाहे हाँककर कहीं ले जाय,उनसे कुछ भी करवा ले?
एक बड़ी अच्छी पोस्ट पढ़ी इस विषय पर, साँझा कर रही हूँ, आप भी पढ़ें। किसी को इनके लेखक का नाम ज्ञात हो तो कृपया अवश्य बताएँ ताकि उनको टैग कर धन्यवाद दे सकूँ।
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गुणवत्ता खाद्य पदार्थ की मात्र नही जनसंख्या की भी होनी चाहिए। तमाम दार्शनिकों ने इस ओर आगाह किया था कि बच्चे पैदा करने के नाम पर गुणवत्ता विहीन बच्चे नही होने चाहिए , भीड़ को जन्म देना हमेशा खतरनाक रहा है।
भारत मे आज यही देखने को मिल रहा है। सर्वप्रथम युवा ऊर्जा का संरक्षण आवश्यक है इन ऊर्जा का जितना सदुपयोग है उतना ही दुरूपयोग का बुरा परिणाम मिलता है। जब युवा भीड होंगे तब इनका अपना स्वविवेक नही होगा , जिनका स्वविवेक नही होता वह हिंसक भीड़ मे तब्दील हो जाते हैं।
बिल्कुल सरल हो गया है युवाओं को इस्तेमाल कर लेना। वैश्विक परिदृश्य मे एक देश सिर्फ आंतरिक नही अपितु बाहरी ताकतों से भी अपने देश मे जंग लड़ रहा है। एक देश की सरकार दूसरे देश की सरकार को अपना मित्र मानती है अथवा अपना शत्रु इसलिए शत्रु सरकार शत्रु देश मे आंतरिक माहौल खराब करने के फिराक मे रहती है और इसके लिए वह आर्थिक प्रयोग भी करती है।
किसान बिल हो या फिर सरकार की कोई योजना अब मोदी सरकार को घेरने के लिए व सरकार के खिलाफ माहौल बनाने के लिए हिंसक प्रदर्शन का सहारा लिया जा रहा है। इसी का बड़ा प्रयोग अग्निपथ योजना को लेकर भी है।
असल मे मामला इतना घातक नही है कि इसके लिए सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया जाए और कानून अपने हाथ मे लेकर दंगाई होने का दाग युवा अपने चरित्र पर लगा लें। बड़ा सरल सा मामला है सरकार की यह नौकरी नही पसंद है , आप असहमत हो तो आप फार्म ही मत भरिए। कोई आपको जबरन ये नौकरी नही देगा।
खुशी और सहमति से काल सेंटर पर कुछ हजार ₹ की नौकरी करने वाले लोगों को सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त नौकरी करने से आखिर क्या आपत्ति हो सकती है ? जहाँ आर्थिक सुरक्षा भी प्राप्त हो रही है और भविष्य मे अन्य अवसरों मे ससम्मान लिया जाएगा। दूसरी बड़ी बात एक अनुशासित जिंदगी जीने वाले जवान देश और समाज के लिए तैयार हो जाएंगे।
आग लगा दो….. आग लगा दो जैसे गाने के दौर मे कुछ खास लोगों के पेशेवर विरोध के शिकार हो रहे हैं युवा ! कुलमिलाकर देश के लिए यह आगजनी वाली तस्वीर बड़ा झटका है जहाँ विपक्ष को आनंद आ सकता है परंतु हम समाज और एक देश के रूप मे बुरी तरह से असफल होते जा रहे हैं। हमारी बढ़ती जनसंख्या गुणवत्ता विहीन जनसंख्या है जहाँ बच्चे एक्सीडेंटल हुए हैं नाकि मनोयोग से संतानोपत्ति हुई है और बाद मे उन्हें सही मार्गदर्शन भी नही मिला व हमारे नेता और सरकारें बुरी तरह से फेल हैं इसलिए सरकार की योजनाओं पर विचार-विमर्श द्वारा संशोधन के अलावा सर्वप्रथम दंगा – फसाद हो रहा है।
युवाओं के लिए अवसर की कमी नही है। अगर अग्निवीर नही बनना तो अन्य अवसरों हेतु प्रयास करिए लेकिन देश जलाने का प्रयास अक्षम्य और दागदार है जो लोग जला रहे हैं वह सेना मे भर्ती होने की भावना रखने वाले लोग हो ही नही सकते।

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