Home राजनीति #जिम्मेदार_कौन

आज जो संकट है उसके लिए अगर कोई जिम्मेदार है तो अमेरिका की हथियार लॉबी।

कैसे?
सोवियत संघ का विघटन हो चुका था और येल्तसिन के बाद पुतिन के हाथों में नेतृत्व था।
पुतिन रूस को यूरोपीय संस्कृति के अधिक नजदीक मानते रहे हैं और इस संदर्भ में उनकी दृष्टि पीटर महान के समान है।
वे यहाँ तक बढ़ गए कि उन्होंने नाटो में शामिल होने की इच्छा जताई लेकिन ‘प्रोटोकॉल’ का हवाला देकर पुतिन के रूसी स्वाभिमान को चोट पहुँचाई गई और एक तरह से नाटो के दरवाजे बंद कर दिए गए।
पर बात केवल इतनी नहीं है।
मूल बात यह थी कि अगर रूस नाटो का सदस्य बन जाता तो यूरोप में नाटो का औचित्य ही समाप्त हो जाता और वहाँ अमेरिका की सैन्य उपस्थिति बेमानी हो जाती।
पर असली डर यह था कि यूरोपीय हथियार बाजार में रूस एक दमदार प्रतिद्वंदी के रूप में उभरता जो न अमेरिकी हथियार लॉबी को स्वीकार था और न फ्रांस, ब्रिटेन व स्वीडन की लॉबी को।
नतीजतन रूस को एक ‘भावी शैतान’ की तरह बाहर रखा गया ताकि उसका भय दिखाकर पूर्वी यूरोपीय देशों व अतीत के रूस विरोधी देशों को हथियार बेचे जा सकें।
अमेरिकी थिंक टैंक में हेनरी किसिंजर जैसे लोग अतीत की गलती को सुधारने की कोशिश कर पूरब में अपना ध्यान केंद्रित करना चाह रहे थे और ट्रम्प इसपर सहमत थे लेकिन हथियार लॉबी, स्वास्थ्य लॉबी व पूर्व के सोवियत विरोधी मानसिकता के नीति निर्धारक अमेरिका में उपस्थित चीन द्वारा फंडेड वामपंथियों के हाथों में खेल गये जिसका परिणाम है रूस को फिर से विरोधी बनाकर चीन के साथ खड़ाकर दुश्वारियां बढ़ाना।
जिस चीन के साथ रूस की झड़प हो चुकी है,
जिस चीन के साथ रूसी संरक्षित देश ताजिकिस्तान के संपूर्ण पामीर पर दावे के कारण तनाव था,
जिस चीन का रूस के साथ ब्लादीवोस्टोक पर दावे के कारण तनाव था,
आज उसी चीन की गोद में रूस को धकेल दिया गया है।
सत्य तो यह है कि यूक्रेन में तो अमेरिका हार ही चुका है साथ ही हिंदमहासागर में चीन की आक्रामकता के द्वार उसने खोल दिये हैं।
भविष्य में चीन की आक्रामकता के दर्शन हिंद महासागर में होंगे और अमेरिकी मूर्खता, लालच व अदूरदर्शिता का परिणाम जापान, वियेतनाम, ऑस्ट्रेलिया व भारत को भुगतने होंगे।
यह तृतीय विश्वयुद्ध की भूमिका है पर युद्ध यहाँ नहीं हिंद महासागर में लड़ा जाएगा।

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