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डर, बस इसका है कि जनता मज़ा न ले

by Swami Vyalok
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कई बार दोहरा चुका हूं, लेकिन एक बार फिर कहना पड़ रहा है। यह देश अजीब है और उसमें भी बिहार और यूपी तो अजीबतरीन हैं। यूपी तो अपना अजीबपना इतने रंग बदलकर दिखाता है कि क्या ही कहा जाए, बस!

अपर्णा यादव कोई इतनी बड़ी नेत्री नहीं हैं कि उनके भाजपा-प्रवेश को लेकर इतना परेशान हुआ जाए। भाजपा ने केवल अखिलेश को परेशान करने के लिए ये किया है और इससे उसकी दुश्वारियां बढ़ेंगी ही। कैंट सीट अगर अपर्णा को दी गयी, तो रीता जी के साथ भाजपा के और भी नेता नाराज होंगे। लखनऊ कैंट सीट को लेकर वैसे भी एक अनार, साढ़े पंद्रह बीमार की हालत है।

नेता तो इस तरह 5 साल के बाद अंतरात्मा को जगाते हैं कि उन्हें यह याद ही नहीं रहता कि जनता पूरे पांच साल भले सोए, चुनाव के समय जागती है। बिहार चुनाव के समय हम पत्रकारों के बीच एक चुटकुला चलता था कि सुबह उठते ही हम पूछते थे- आज किन नेताजी की अंतरात्मा जागी है या जागनेवाली है?

मजा वैसे हमारी पत्रकार बिरादरी को देख कर आता है। सुबह तक अपर्णा यादव थीं, दस बजते-बजते वह अपर्णा ‘बिष्ट’ यादव हो गयीं। स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा मौर्य ने लगे हाथों संस्कार पर शिक्षा देकर भाजपा को असहज स्थिति में ला ही दिया है। भाजपाई चूंकि अलग तरह की राजनीति करते हैं, तो स्वामी प्रसाद मौर्य के सपाई होने के बावजूद उनको उम्मीद है कि बेटी उनके ही साथ रहेगी।

 

वैसे भी, इस चुनाव में भाजपा और सपा के अलावा सबको उम्मीदें दिख रही है। इतनी उम्मीदें हैं कि चचा नीतीश कुमार भी बिहार में भाजपा से रगड़ा कर यूपी में 50 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। यहां तक कि वीआईपी के सहनीजी भी ताल ठोंक रहे हैं।
चुनाव का अब तक का लब्बोलुआब यही है कि भाजपा को पता चल गया है कि इस बार का चुनाव वर्चुअली ही लड़ा जाएगा और उसमें उनके आसपास भी कोई नहीं। इसलिए, वे मजा ले रहे हैं।
डर, बस इसका है कि जनता मज़ा न ले ले….

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