अगर मोदी इंदिरा और कांग्रेस जैसे राजनैतिक घटियापन पर उतरते तो न 370 हटती, न राममंदिर बनता और न सेना का सशक्तिकरण होता।
प्रत्येक के पास निश्चित ऊर्जा होती है जिसका उपयोग या तो निजी अहं को तुष्ट करने में कर ले या महान कार्यों को करने में।
नेहरू और इंदिरा जैसे सस्ते दिमाग के नेताओं ने हमेशा निजी अहं को ऊपर रखा।
नेहरू ने पटेल को नीचा दिखाने में ऊर्जा खर्च की और परिणाम में कश्मीर व तिब्बत में हम आज तक जलालत झेल रहे हैं और इंदिरा का तो कहना ही क्या?
अपने अहं के लिए सेना द्वारा जीते युद्ध को टेबल पर हारना, सिख आतंकवाद को बढ़ावा और इमरजेंसी…..
मेरे जैसे लोग मोदी से भी यही हल्के स्तर की अपेक्षा करते हैं।
दरअसल हमारा देश तमाशाप्रिय देश है। कॉलोनी में दो पडोसियों के बीच लड़ाई का आनंद लेने बाकी लोग अपना कामधाम छोड़कर जुट जाते हैं।
हमारी यही तमाशाप्रियता मोदी से भी यही कुछ देखने को अपेक्षा करती है और मोदी बार-बार निराश कर देते हैं तो जाहिर है हम लोगों को इंदिरा का ओछापन भी गुण के रूप में दिखेगा।
चाहे दो चार जूते स्वयं को भी पड़ें पर तमाशा होना चाहिए,
‘घर फूँके, तमाशा घुस के देखे’ कहावत यूँ ही नहीं बनी।
अपनी दुश्मन कौम से ही सीखिए बिना नेता के ही टुच्चे मौ लानाओं और मु ल्लों के नेतृत्व में बिना हल्ले गुल्ले के डेमोग्राफी बदल दी।
मोदी अपनी ऊर्जा आपको सस्ता तमाशा दिखाने में नहीं करेंगे।
तो जान लीजिए चटपटा तमाशा तो नहीं ही मिलेगा।
जो भी होगा विधिसम्मत, धर्मसम्मत और मोदीसम्मत ही किया जाएगा।

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