Home आर ऐ -ऍम यादव ( राज्याध्यक्ष) दूसरे विश्वयुद्ध के बाद का इतिहास
दूसरे विश्वयुद्ध के बाद सोवियत रूस ने कई पड़ोसी देशों पर कब्जा कर लिया था, लेकिन वामपंथी इसे लिबरेशन कहेंगे। बाल की खाल निकालेंगे तो ठीक है, रूस के पहले हिटलर की जर्मनी का उनपर कब्जा था। तो रूस ने वहाँ से आक्रांता जर्मन शासन तो हटाया लेकिन उसकी जगह खुद काबिज हुए। समाजवाद नाफिस हुआ। समाजवाद भी नाफिस ही होता है, अंधविश्वास की पुस्तक का बैक कवर समाजवाद है।
अस्तु। समय का पहिया घूमा और पोलैंड के साथ कई देश वाकई आजाद भी हुए। तब पोलैंड ने अपने यहाँ से आक्रांता रूस के सारे चिह्न उखाड़ दिए। कमीने कम्युनिस्टों की लगभग कोई निशानी नहीं छोड़ी। यहाँ तक कि पैलेस ऑफ कल्चर एण्ड साइंस भी उड़ा देने का मन बनाया था लेकिन फिर रहने दिया गया, लेकिन वहाँ से सारी कम्युनिस्ट रूसी निशानियाँ मिटाई गई क्योंकि वे आक्रांता थे।
वैसे तो हर आक्रांता सत्ता स्थानिकों के सहारे ही चलती है, पोलैंड के भी कई लोग कम्युनिस्ट बन गए। सत्ता का आकर्षण कमीनों को होता ही है, उनके लिए कोई अपना पराया नहीं होता। मनुष्य स्वभाव है, और कौवा हर जगह काला ही होता है। पोलैंड के लोग कोई अपवाद नहीं थे। वे भी कम्युनिस्ट हो गए थे और अपनों पर ही अत्याचार करते थे, पावर में कुछ लोगों को ऐसे भी मज़ा आता है कि वे अपनी पहचान की ताकत पर दूसरों को दबा सकें। हक मारना वगैरा शब्द उनके लिए तब मायने नहीं रखते। जैसे 370 हटाने तक कश्मीर में हिंदुओं का हक मारना वहाँ के किसी को गैर नहीं लगता था और इसका बंद होना आज पाकिस्तान के लोगों को बुरा लगता है। उनको लगता है यह बंद होना कश्मीर के दीनी भाइयों का हक मारना है।
अस्तु, पोलैंड पर आते हैं। उन्होंने कम्यूनिज़्म के प्रति खुला तिरस्कार दिखाया और उसे उखाड़ फेंक फिया। उसे सम्मानयोग्य कहने की गलती नहीं की क्योंकि उसकी दुष्टता का सब को अनुभव था।जो कम्युनिस्ट बने थे उन्होंने भी कम्यूनिज़्म छोड़ने में ही भलाई समझी।
रूस में एक बड़ी नदी है वोल्गा। पोलैंड में भी एक बड़ी नदी है विस्तुला। लेकिन पोलैंड के लोगोंने किसी भी नकली वोल्गा विस्तुला तहजीब की बात नहीं की। जो दुष्टता थी उसे निर्भयता से दुष्टता कहा और उखाड़ फेंक दिया। दूसरे देश का दढ़ियल मार्क्स उनके लिए सम्मान का पात्र नहीं रहा, उसकी मुफ्तखोरी, उसका ठरकीपन, सब की खुलकर चर्चा हुई और ये दुष्ट विचारधारा को सार्वजनिक लतियाया गया।
सोचिए अगर रूस से स्वतंत्र होते समय पोलैंड के नेताओं को बौद्धिक लकवा मार जाता तो कम्युनिस्ट वहाँ एक अल्पसंख्यक समुदाय की अधिकृत पहचान ले कर फलते फूलते, जनता के दिए हुए टैक्स पर मुफ्तखोरी कर के अपनी तादाद और ताकत बढ़ाते और माइनोरिटी से मुंहजोरीटी बन जाते।
सही सीख जहां से मिले, लेनी चाहिए। श्रीराम ने तो लक्ष्मण जी को भी मरते हुए रावण के पास भेजा था, ज्ञान दान मांगने।

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