Home विषयचिकित्सा जगत निःसंदेह वे देश पर बोझ हैं

निःसंदेह वे देश पर बोझ हैं

by रंजना सिंह
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देश में आज उनकी की आबादी है लगभग 30% पर इनके म ज्जबी नजरिये और दर्जन भर बच्चे पैदा करने के संकल्प के कारण-
*प्राईवेट अस्पतालों में तो इनकी भर्ती है मात्र 4% पर मुफ्त के सरकारी अस्पतालों में ये हैं लगभग 45%
* ये विधर्मी का खून लेने के लिये तो तुरन्त लेट जाएंगे पर जब देने की बारी आएगी तो किताब का हवाला देकर अपने सगों को भी देने से भी पीछे हट जाते हैं
* रक्तदान शिविरों में इनकी उपस्थिति लगभग नगण्य ही होती है और अंगदान तो खैर इनके लिए हराम ही है
*पुलिस में ये हैं मात्र 6% पर जेलों में हैं लगभग 32%
*ऑलंपिक और एशियाड के व्यक्तिगत-पदक विजेताओं में ये आज लगभग शून्य हैं…. पर अपराधों में ये हैं लगभग 44%
*इनकम टैक्स में इनका योगदान है मात्र 3% पर बिजली-पानी चोरी में ये हैं 61%
*नई कार खरीदी में ये हैं 6% पर पंचर बनाने जैसे कामों में हैं 67%
*समाजसेवा में ये हैं सिर्फ 2% पर वेश्यावृत्ति में इनकी भागीदारी है 41%
*मंहगे मॉलों में ये मिलेंगें 4% पर सस्ते सब्सिडाइज्ड चिडियाघर में ये मिलेंगें 47%
*महंगे निजी स्कुलों में तो इनके बच्चे हैं लगभग 4% पर खैराती मद रसों में हैं पूरे 100%
* देशविरोधी आतंकी संगठनों में तो ये हैं 100% पर इसरो और डीआरडीओ जैसे संस्थाओं में ये हैं महज 2%
*देशहित में नारे लगाने में ये हैं 1% पर देशद्रोह के कुल आरोपियों में ये हैं 95%
*फिर भी इनके म ज्जि द और मद रसों को सरकारी सहायता मिलती है और मंदिरों का चढ़ावा सरकार ले लेती है
*उर्दू भाषा के भिज्ञता के आधार पर इनको आईएएस और आईपीएस बना दिया जाता है और संस्कृत का “सवर्ण” विद्वान भिक्षा का कटोरा लेकर दर दर भटकता है।
प्रश्न यह कि तुष्टिकरण ने सेकुलड़िता के नाम पर जो कैंसर पाला है, कभी इसका इलाज भी होगा या देश को गल गल कर मर जाने दिया जाएगा??

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