वह सुप्रीम कोर्ट जो हर ऐरे गैरे को यहाँ तक कि कसाब तक को राइट ऑफ लाइफ देता है, नूपुर शर्मा को आदेश देता है कि उसके खिलाफ जिस गाँव देहात तहसील जिला प्रदेश मे मुकदमा कायम हो, वह वहीं जाकर अपना केस लड़े।
भारतीय संविधान और दुनिया के हर संविधान मे एक बात जो मूल मानी गई कि न्यायालय मे जब तक कोई दोषी नहीं साबित होता वह निर्दोष माना जाता है। यह पहली बार इस तरह का न्याय है कि अदालत ने नूपुर शर्मा को केस चलने से पहले ही दोषी मान लिया।
अदालत हमेशा अपने पूर्व के निर्णयों से चलती आई हैं। अर्नब का केस हो या कंगना का ऐसे केसेज मे जब एक ही तरह के मुकदमों मे देश भर मे केस फाइल होते हैं तो सुप्रीम कोर्ट उसे सदैव एक मे क्लब कर देता है। ऐसा करने से अदालतों का समय भी बचता है और मुवक्किल का। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की नजर मे नूपुर शर्मा के लिए अलग कानून है।
अब जैसे माहौल हैं, उनमें यदि नूपुर के खिलाफ पूरे देश के रिमोट से रिमोट गाँव मे केस दाखिल होता है, नूपुर केस के संबंध मे वहाँ जाती हैं और उन्हें कुछ भी हो जाता है तो नियमतः इसकी जिम्मेदारी माननीय न्यायाधीश की होनी चाहिए।
अदालत को यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि ऐसे केसेज मे उसने पूर्व मे जो निर्णय दिए थे क्या वह गैर कानूनी थे?
कानून का प्रथम नियम ही है कि सबके लिए समान होता है।
शायद वाराणसी मे ज्ञानवापी प्रकरण मे आदेश देने वाले जज साहब को धमकी मिलने के पश्चात सुप्रीम कोर्ट के मई लॉर्ड डर गए हैं। आफ्टर आल डर सबको लगता है।