भाजपा के एक वरिष्ठ नेता हैं, नाम लेना उचित नहीं. मंत्रि मण्डल में विस्तार के समय उनकी खूब चर्चा थी मंत्री बनाए जाने की. पर उनकी समस्या यह कि वह लिखित में / ऑन कैमरा/ ट्विटर आदि पट उस समय भी जिसे भड़काऊ बयान बाज़ी कहना चाहिए चालू रही. PMO के एक अधिकारी से मेरी मित्रता थी, उसने फ़ोन करके विशेष बोला कि यह कभी भी मंत्री नहीं बनाए जाएँगे. ज़ाहिर सी बात है नहीं बने.
सुनने में बुरा लग सकता है, पर कड़वा सच यह है कि आप बड़ी पोस्ट पर हों, विधायक, सांसद, मंत्री हों – आपके स्टेट्मेंट सदैव नपे तुले होने चाहिए, यही राजनैतिक परिपक्वता होती है. जब आप स्ट्रीट फ़ाइटर होते हैं तब कुछ भी बोलिए चलता है, पर जैसे जैसे आप सीढ़ियाँ चढ़ते हैं, आपकी वाणी और हाव भाव मेच्योर हो जाने चाहिए. अब आपसे उम्मीद बयान बाज़ी की नहीं बल्कि ऐक्चूअल कार्य की होती है.
भाजपा में रहते हुवे श्री राम आंदोलन के लगभग सभी बड़े नेताओं से मिलना हुआ – आडवाणी जी, उमा श्री भारती जी, अशोक सिंघल जी, विनय कटियार जी, साध्वी रितंबरा दीदी. अगर कभी भड़काऊ स्पीच दी होगी, तब दी होगी, समय के साथ इतने परिपक्व हो गए थे कि बहुत महीन काटते थे. कैडर और नेता में यह बेसिक फ़र्क़ होता है. कैडर नारेबाज़ी करता है, नेता कार्य करता है.
ज़्यादा दूर क्यों जाएँ, मोदी जी और अब योगी जी को ही देख लीजिए. सुलगती सबकी है इनसे लेकिन इनके बयान माइक्रो स्कोप लेकर ढूँढ डालिए, आप एक वाक्य ऐसा न पाएँगे जिसे डिस्प्यूटेड कहा जा सके.
इन दिनों यह मुद्दे तूल पकड़ रहे हैं. भाजपा से जुड़े सभी पदाधिकारियों, नेताओं को सजग रहना चाहिए, वाणी में परिपक्वता रखनी चाहिए कि उनके बयानों से उन्ही का ही व्यक्तिगत नुक़सान न हो.
शेष जो है सो है ही.