Home विषयइतिहास नूपुर शर्मा ने नबी पर जो आरोप लगाया , उस का पुख्ता आधार है : भगवान सिंह

नूपुर शर्मा ने नबी पर जो आरोप लगाया , उस का पुख्ता आधार है : भगवान सिंह

Dayanand Panday

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आप क्या सोच रहे हैं। यह जानते हुए कि उसका दल इसे पढ़ेगा नहीं, इस विश्वास से उससे मुखातिब हूं कि आप में से कुछ लोग इस पर नजर डाल सकते हैं, उसको उत्तर दे रहा हूं:
1. मैं सोच रहा हूं कि क्या नूपुर शर्मा ने नबी पर कोई ऐसा आरोप लगा दिया जिसका कोई आधार न था? यदि आधार था और है तो इसे दुहराने वालों को अपराधी सिद्ध करने से पहले उन किताबों को जला देने और उनसे अपना रिश्ता तोड़ लेने के बाद यह घोषणा करनी चाहिए थी कि इसके बाद इनका हवाला दे कर कोई विचार प्रकट करने वालों को दंडित किया जाना चाहिए।
2. फतवा और दंडविधान एक साथ न तो चलना चाहिए न एक के रहते उस/उन व्यक्ति /व्यक्तियों को संविधान प्रदत्त सुरक्षा और सुविधा दी जानी चाहिए जो संविधान और भारतीय न्याय व्यवस्था को नहीं मानते। वे किसी तंत्र की व्याधि हैं और व्याधियों का निवारण किए बिना आप का भविष्य सुरक्षित नहीं है।
3. एक देश में दो, परस्पर विरोधी विधान एक देश को दो में बांटने का षड्यंत्र है। जो प्रशासन इस प्रवृत्ति को बढ़ावा देता है, वह प्रशासनिक विफलता का शिकार है।
4. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हानि लाभ के आधार पर नहीं कसी जा सकती। जिस तरह की लापरवाही बरतने वालों को क्षमा कर दिया जाता है और केवल हिंदुओं से वाक् संयम की अपेक्षा की जाती है वह भारत को पाकिस्तान बनाने की भूमिका हे। नागरिकों के बीच कोई भेद भाव राजधर्म, न्याय और इसके लिए प्रतिबद्ध संविधान की अवज्ञा है।
5. यदि प्रशासन मानता है कि वह सबके प्रति समभाव रखता है तो उसे उस ऐंकर को, उस वक्ता को अभियुक्त बनाना चाहिए था, जिसके उत्तेजक कथन के बाद नूपुर अपने को संयत न रख पाई। पहले उस पर कार्रवाई होनी चाहिए थी, न कि नूपुर पर।
6. भारत को विक्टिम कार्ड का लाभ उठाने वालों को कठोर संदेश देना चाहिए। वे दो मुहे सांप हैं ओर उपद्रव को उचित बताते हुए उसे जारी रखने को उकसाते हैं। उनकी भूमिका शहरी नक्सलियों जैसी है। इनकी गतिविधियों पर नजर रखी जानी चाहिए और किसी उपद्रव की आशंका होने पर इनको हिरासत में लिया जाना चाहिए।
7. नूपुर ने जो कुछ कहा वह मैं 2020 में अपनी पुस्तक ‘भारतीय मुसलमान में कह चुका हूं। अंतर यह कि वह एक विश्लेषण था, इससे कठोर टिप्पणी अपने अपने राम में हिन्दू ऋषियों पर कर चुका हूं। मेरी व्यथा के पीछे मानवीयता है, धर्म और धार्मिक राजनीति नहीं।
8. राजनीतिज्ञ आदर्शवादी नहीं व्यवहारवादी होता है, कूटनीतिक होता है, सब कुछ जानते हुए भी क्या किस संवाद. यहां तक कि विवाद में भी छिपाए जाते हैं और ऐसा संयम बरतने में विफल होने वाले को उस दायित्व से वंचित करना गलत नहीं है।
9. परीक्षा आज न्यायपालिका की है। उसे देखना चाहिए कि न्याय का कर्मकांड निर्दोष नागरिकों के उत्पीड़न का माध्यम न बने। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का एक न्यायिक विचार क्षेत्र होता है जिसमें उससे किसी तरह की शिकायत केवल उसी न्यायपालिका के क्षेत्र में किया जा सकता है जहां वह कहा/लिखा/प्रकाशित किया गया है।
10 शिकायत का अधिकार किसी को है पर उसे उस न्यायसीमा के भीतर आ कर अपनी शिकायत दर्ज करानी होगी। कहीं से कोई शिकायत करने वालों और उनका संज्ञान लेने वाले न्यायालयों को उनकी औकात समझाई जानी चाहिए और उन्हें वक्ता, प्रकाशक के न्यायाधिकार क्षेत्र का सम्मान न करने के कारण उनकी शिकायतों को निरस्त किया जाना चाहिए। यह काम उच्च न्यायालयों या उच्चतम न्यायालय का है जो एक्िव जुडिशियरी कोकी कलंगी लगाए इतराता फिरता है।

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