Home हमारे लेखकइष्ट देव सांकृत्यायन पता नहीं क्यों लोग विवाद से इतना जलते हैं?

पता नहीं क्यों लोग विवाद से इतना जलते हैं?

Isht Deo Sankrityaayan

by Isht Deo Sankrityaayan
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पता नहीं क्यों लोग विवाद से इतना जलते हैं, जबकि विवाद सबसे अच्छी चीज है। हिंदी की कई फिल्मों और कई कवियों को तो हम जानते ही इसलिए हैं कि उन पर विवाद उठे। हालाँकि विवाद के नतीजे हर बार वही निकले – ढाक के तीन पात।

अब जैसे अभी देखिए।
यह कोई पहली बार थोड़े हुआ है कि किसी के गाने किसी ने गा लिए हों। कुछ दिन मैं तिलक ब्रिज से साहिबाबाद के बीच लोकल ट्रेन से आता जाता था। दिल्ली एनसीआर की लोकल ट्रेनों में एक से एक प्रतिभाएँ अपनी सुगंध निःशुल्क बिखेरती हैं।
ऐसी ही प्रतिभाओं में एक थे किशोर कुमार जी। शायद ही कोई उनका असली नाम जानता हो। सभी उन्हें किशोर कुमार के नाम से ही जानते हैं। कारण, वही कॉपीकैट, वह भी ऐसा कि खुद किशोर कुमार चक्कर खा जाएँ। दुबारा गाने को कह दिया जाए तो शायद खुद वैसा न गा सकें। लेकिन हमारे लोकल ट्रेन वाले किशोर कुमार जी… क्या मजाल कि फ़िल्म के गाने से एक मात्रा का भी अंतर कभी आ जाए!!
लेकिन उन्हें लोकल ट्रेन के नियमित यात्रियों को छोड़ और कौन जानता है? कोई नहीं। क्योंकि उस बेचारे को लेकर कभी कोई फतवा जारी नहीं हुआ। फतवा नहीं हुआ तो विवाद भी नहीं हुआ और विवाद नहीं हुआ तो किशोर कुमार के गाए गानों पर उसका कोई अधिकार भी नहीं हुआ।
लेकिन अब देखिए एक नया ट्विस्ट और सस्पेंस से भरपूर मामला फरमानी नाज़ का। न गाना लिखा न धुन बनाया। सारी मेहनत अभिलिप्सा पांडा की। ऐसे गा के रह जाती तो बेचारी रही जाती। कोई जान थोड़े पाता। ऐसे बहुत सारे कॉपी कैट आए गए। कौन जान पाया?
ये तो भला हो जी मुफ़्ती लोगों का, जिन्होंने फतवा जारी कर दिया फरमानी नाज जी के खिलाफ। न वे फतवा जारी करते और न बड़े बड़े सेकुलर बुद्धिजीवियों को फरमानी जी का पूरा इतिहास ले आना पड़ता। अब कुछ लोग बता रहे हैं कि गाना ही इस्लाम खिलाफ है। है तो फिर गुलाम अली, रुना लैला, बेगम अख्तर, मुन्नी बेगम, साबरी, नुसरत फतेह अली खान, मेहदी हसन, इकबाल बानो… इन्हें जिंदा क्यों रहने दिया भाई??
लेकिन ठहरिए जरा! ये देखिए न, हमी लोग किधर बहने लग गए। गाने पर पूरी मेहनत तो थी अभिलिप्सा पांडा की, लेकिन अभिलिप्सा की कहीं कोई चर्चा नहीं। चर्चा है फरमानी की। जैसे फरमानी जी ने ही पूरी मेहनत करके सब कुछ तैयार किया हो। तो हुआ क्या, इस फतवे के जरिये? सिर्फ हेराफेरी। तथ्यों का एक अभूतपूर्व किस्म मैन्युपुलेशन, जिससे कि नकल ही असल लगने लग जाए!
जरा सोचिए, जिनकी खिलाफ कभी फतवे के खिलाफ नहीं खुली, वही बेचारे आज फतवे के खिलाफ बोलने लग गए! ऐसा हो रहा है तो कोई तो कारण होगा न!!!अब आप फरमानी जी से कॉपी कैटिंग का मामला अगर पूछें भी तो उसका कोई मतलब नहीं रह गया। अब सवाल एक ही रह गया और वो है….

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